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शिक्षार्थी
बचपन में जो संस्कार पड़ जाते हैं, वे जीवन-भर टिकते हैं । सुलसा पर ऐसे धार्मिक संस्कार पड़ गये थे कि अंबड़ को उसके सामने झुकना
पड़ा ।
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प्रभु महावीर ने अंबड़ के साथ सती सुलसा को धर्मलाभ का संदेश कहलाया था । उसने ब्रह्मा, विष्णु, महेश और अन्त में स्वयं महावीर का नकली रुप धारण करके उससे सुलसा को अपनी ओर आकर्षित करने का भरपूर प्रयास किया; किन्तु उसे सफलता नहीं मिली । फिर असली रुप में सुलसा के सामने जाकर प्रभु का सन्देश सुनाया । अंबड श्रावक इस दृढता से प्रभावित हुआ और उसका भी उद्धार हो गया ।
सम्यग्ज्ञान भीतर से आता है, बाहर से नहीं । हीर को मिसा जाय तो उसकी चमक बढती है; किन्तु यह चमक बाहर से नहीं; भीतर से आती
। ईंट के भीतर चमक नहीं होती; इसलिए मिसने पर उससे मिट्टी झरती है - वह टूटकर बिखर जाती है, परंतु चमक नहीं हो सकती । भरत महाराजा चक्रवर्ती सम्राट थे, वैभवशाली थे; फिर भी दर्पण - भवन अपने शरीर के स्वरूप पर विचार करते-करते उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया । भीतरी संस्कार समय पर संयोग पाकर बाहर आ गये ।
चलती ट्रेन में बैठे एक व्यक्ति ने जब ट्रेन के रुकने पर यह सुना कि टर्मिनल (अन्तिम स्टेशन) आ गया है, गाड़ी खाली करो तो वह विरक्त हो गया । सोचा कि आयुरूपी ट्रेन का भी इसी प्रकार टर्मिनल आने वाला है ।
विवाह के समय समर्थ स्वामी रामदास ने मंडप में "सावधान" शब्द सुना और वे तत्काल सावधान हो कर बिना विवाहित हुए ही वहाँ से भाग गये और सन्यासी बन कर जनकल्याण का उपदेश देने लगे ।
सुनी हुई बात पर चिन्तन करने से वेराग्य किस प्रकार उत्पन्न होता है इस बात के ये दो उदाहरण हैं । वैराग्य आत्माको परमात्मा में रूपांतरित कर सकता है ।
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जो इस लोक में सुख चाहते हैं, वे कर है । जो परलोक में सुख चाहते हैं, वे मजदूर हैं और जो लोक-परलोक की पर्वाह न करके परमात्मा बनना चाहते हैं; वे शूर हैं । जैन धर्म शास्त्र इसी बात की शिक्षा देते हैं कि व्यक्ति को शूर बनना चाहिये |
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