________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org.
सत्संग
हवा के लिए कोई कमरा निर्धारित नहीं होता कि जब साँस लेना हो, उसमें चले जाएँ और शेष समय अन्यत्र रहें । उसी प्रकार धर्म के लिए कोई स्थान या अवस्था निर्धारित नहीं है । जैसे हवा सर्वत्र होती है. वेस ही धर्म भी जीवन में सर्वत्र होना चाहिये ।
अइमुत्ता मुनि, हेमचन्द्राचार्यजी आदि अनेक महापुरुष ऐसे हुए हैं, जिन्होंने बचपन में ही संयम स्वीकार कर लिया था । पहले से जो प्रकाश के मार्ग पर चल पड़ते हैं, वे धन्य हैं । धर्माचरण उनके लिए सुगम होता है; परन्तु जो लोग सांसारिक मोह-माया के आंधर में भटकने के बाद संयमसूर्य का प्रकाश पाते हैं, वे और अधिक धन्य हैं; क्योंकि धर्माचरण उनके लिए दुर्गम होता है- अपने मन को मोक्षमार्ग की और मोडने के लिए उन्हें अधिक श्रम करना पड़ता है अधिक तप करना पड़ता है
अधिक सावधान रहना पड़ता है ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
संयम पाने के लिए संयमी का सान्निध्य जरुरी है । हिन्दु में कहावत हैं “खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है ।" यह संगका रंग है, जो सब पर चढ़ता है । पारस के सम्पर्क से लोहा सोने में बदल जाता है । पानी की बूंद कमलपत्र पर हीरे की तरह चमकती है, सीपी में पड़े तो मोती बन जाती है और तप्त तवे पर पड़े तो भाप बनकर उड़ जाती है । नर्मदा नदी में बहने वाले पत्थर शंकर बन जाते हैं और ककर शालिग्राम ! ग्रीष्मकाल में पथिक सघन वृक्ष की छाया में केसा विश्राम पाता है ? निर्झर के निकट प्यासा व्यक्ति केसी तृप्ति पाता है ? जिज्ञासु भी ज्ञानी के पास वैसी ही तृप्ति पाता है ! मुमुक्षु भी, महापुरुषों के सान्निध्य में वैसा ही विश्राम पाता है ! अर्जुनमाली दृढप्रहारी, चण्डकौशिक जैसे दुष्टों को भी यदि आत्मशान्ति प्राप्त होती है तो उसके मूल में सत्संगति के अतिरिक्त और क्या है ?
७२
सन्तों की संगति कितनी दुर्लभ है ? यह सन्त सुन्दरदासजी से जानिये । वे कहते हैं :
तात मिले पुनि मात मिले सुत भात मिले जुवती सुखदाई राज मिले गज बाज मिले सुखसाज मिले मनवांछित पाई ।
For Private And Personal Use Only