________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जीवन का लक्ष्य
कली मुस्कुराती है तो वह विकसित होकर फूल बन जाती है । जीवन विकास के लिए भी प्रसन्नता इसी प्रकार आवश्यक है ।
क्रोधादि कषाय उस प्रसन्नता को नष्ट कर देते हैं । मोह, ममता और विषयासक्ति से भी यही कार्य होता है । शोक, चिन्ता, अन्याय, अत्याचार
और भय भी हमारी प्रसन्नता को छीन लेते हैं । निर्बलता और भीरुता से भय उत्पन्न होता है ।
एक शान्तरस क कवि का कथन है कि दुनियाँ में वैराग्य को छोड़कर अन्य समस्त वस्तुओं का सम्बन्ध भय से होता है; क्योंकि जिस वस्तुओके हम पाना चाहते हैं और पा लेते हैं, उसके नष्ट होने का भय मन में टिका रहता है:
“सर्व वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां"
वैराग्यमेवाभयम् ।।" जब श्रीकृष्ण से अर्जन ने पूछा कि मन को वश में करने का उपाय क्या है, तब उन्होंने उत्तर दिया :
“अभ्यासेन तु कौन्तेय !
वैराग्येण च गृह्यते ।।" (हे अर्जन ! अभ्यास और वैराग्य से मन वश में किया जा सकता है)
श्मशान में मर्दे को भस्म होते देखकर किसे वैराग्य नहीं होता ? कौन नहीं सोचता कि हमें भी एक दिन परिश्रमपूर्वक जोडी गई सम्पत्ति छोड़कर अंकले ही जाना होगा ? परिवार का प्रियतम सदस्य भी हमारे साथ नहीं आयेगा ?
"हम-हम करि धन-धाम सँवारे अन्त चले उठि रीते ! मन पछि तै हे अवसर बीते !"
धन, सत्ता, रूप, यौवन, परिवार आदि सब फुलाये हुए गुब्बारे की तरह हैं । हवा निकलते ही सब कान्तिहीन हो जाएँगै । इन पर गर्व करना
१ "नगण्य' इसलिए कि जन्म, जरा, मृत्यु के अनिवार्य दुःख ही रहेंगे; अन्य दुःख नहीं ।
४३
For Private And Personal Use Only