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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. सम्राट् अशोक बड़ी मुश्किल से कलिंग देश पर विजय पा सके थे। उसकी आश्चर्यजनक शक्ति का कारण पूछने पर कलिंग देश ने सम्राट् अशोक से कहा :- राजन् ! मैं प्रत्येक सैनिक को हार्दिक प्रेम देता हूँ । वे भी आपस में प्रेम करते हैं; इसलिए संगठित रहते हैं। यह संगठन ही शक्ति का कारण है ।" महात्मा गांधी के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए एक कवि ने गाया था : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुमने अपना प्राण दिया और मौतकी शान बढ़ाई । तुमने अपना खून दिया और प्रेम की ज्योति जलाई ।।” महात्माजी की अहिंसा और देशवासियों के प्रति उनका हार्दिक प्रेम प्रसिद्ध है । खून खून का दाग नहीं घुलता । उसके लिए प्रेम-जल चाहिये । डाकू रत्नाकर को एक ऋषि के प्रेम ने महर्षि वाल्मीकि बना दिया था। करुणा भी प्रेम का ही एक रूप है । उसमें इतनी कोमलता होती है कि कठोर से कठोर हृदय भी ( करुणा से ) कोमल बन जाता हैं । हृदयरूपी पर्वत से सदा करुणा, प्रेम, वात्सल्य और दया का झरना बहता रहे तो इस दुनिया के दुःख 'नगण्य रह जाएँ । प्रभु कहते थे : मित्ती मे सव्वभूएसु वेरं मज्झं न केणइ ।।" (मेरी सब प्राणियों से मित्रता है, किन्तु शत्रुता किसी से नहीं है ! ) धरती सब के लिए अन्न उत्पन्न करती है- पानी सब की प्यास बुझाता है. - हवा सभी प्राणियों को जीवित रखती है सूर्य सब को प्रकाश देता है- पेड़ सब को फल और शीतल छाया देते हैं - फूल सब को सुगन्ध लुटाते हैं; फिर मनुष्य ही क्यों स्वार्थी और संकुचित रहे ? प्रकृति की तरह मनुष्य के हृदय में भी उदारता, विशालता, प्रेम और परोपकार के दर्शन क्यों न हो ? ४२ जीवनविकास के लिए समस्त दुर्गुणों का त्याग तो जरूरी है ही, साथ ही समस्त सगुणों को अपनाना भी जरूरी है । फूल में दुर्गन्ध बिल्कुल नहीं होती और सुगन्ध भरपूर होती है । जीवन भी क्या ऐसा ही एक फूल नहीं है ? For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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