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सम्राट् अशोक बड़ी मुश्किल से कलिंग देश पर विजय पा सके थे। उसकी आश्चर्यजनक शक्ति का कारण पूछने पर कलिंग देश ने सम्राट् अशोक से कहा :- राजन् ! मैं प्रत्येक सैनिक को हार्दिक प्रेम देता हूँ । वे भी आपस में प्रेम करते हैं; इसलिए संगठित रहते हैं। यह संगठन ही शक्ति का कारण है ।"
महात्मा गांधी के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए एक कवि ने गाया
था :
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तुमने अपना प्राण दिया और मौतकी शान बढ़ाई । तुमने अपना खून दिया और प्रेम की ज्योति जलाई ।।” महात्माजी की अहिंसा और देशवासियों के प्रति उनका हार्दिक प्रेम प्रसिद्ध है ।
खून खून का दाग नहीं घुलता । उसके लिए प्रेम-जल चाहिये । डाकू रत्नाकर को एक ऋषि के प्रेम ने महर्षि वाल्मीकि बना दिया था। करुणा भी प्रेम का ही एक रूप है । उसमें इतनी कोमलता होती है कि कठोर से कठोर हृदय भी ( करुणा से ) कोमल बन जाता हैं । हृदयरूपी पर्वत से सदा करुणा, प्रेम, वात्सल्य और दया का झरना बहता रहे तो इस दुनिया के दुःख 'नगण्य रह जाएँ ।
प्रभु कहते थे :
मित्ती मे सव्वभूएसु
वेरं मज्झं न केणइ ।।"
(मेरी सब प्राणियों से मित्रता है, किन्तु शत्रुता किसी से नहीं है ! )
धरती सब के लिए अन्न उत्पन्न करती है- पानी सब की प्यास बुझाता है. - हवा सभी प्राणियों को जीवित रखती है सूर्य सब को प्रकाश देता है- पेड़ सब को फल और शीतल छाया देते हैं - फूल सब को सुगन्ध लुटाते हैं; फिर मनुष्य ही क्यों स्वार्थी और संकुचित रहे ? प्रकृति की तरह मनुष्य के हृदय में भी उदारता, विशालता, प्रेम और परोपकार के दर्शन क्यों न हो ?
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जीवनविकास के लिए समस्त दुर्गुणों का त्याग तो जरूरी है ही, साथ ही समस्त सगुणों को अपनाना भी जरूरी है ।
फूल में दुर्गन्ध बिल्कुल नहीं होती और सुगन्ध भरपूर होती है । जीवन भी क्या ऐसा ही एक फूल नहीं है ?
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