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लिए यदि सोलह वर्ष लग जाते हैं तो सम्यक्त्वधारी बनने के लिए चार पाँच वर्ष भी नहीं लगंगे क्या ? यदि आप प्रतिदिन कवल दो गाथाएँ समझकर कण्ठस्थ करने का नियम बना लें तो पाँच वर्षों की अवधि में साढ़े तीन हजार से अधिक गाथाएँ आपंक मस्तिष्क में संकलित हो जायेगी। "बूंद-बूंद से पड़ा भरता है" यह कहावत आप के जीवन में चरितार्थ हो जायेगी । आप श्रुतभ्यासी बन जायेंगे ।
आप का श्रुतज्ञान आपको आचरण की प्रेरणा देगा। इस प्रकार सम्यग्दर्शन (सम्यक्त्व), सम्यग् ज्ञान और सम्यक् चारित्र आपंक जीवन को भूषित करेगा।
पहले भौतिक सुखसामग्री उतनी नहीं थी, जितनी आज है; फिर भी उन लोगों का जीवन सुखी था - शान्त था; परन्त आज सामग्री सैंकड़ो गुनी हो गई है; फिर भी सुख-शान्ति का अभाव है। सख भीतर रहता है । बाहर दौड़-धूप करने से वह नहीं मिल सकता । दूर से सुख दिखाई दता है; परन्त निकट जाने पर निराश होना पड़ता है; रात को सड़क पर प्रकाश देखकर एक बढिया वहाँ आई और कछ ढूँढने लगी । पूछने पर उसने बताया कि में अपनी सुई ढूँढ रही हूँ। लोगों ने गछा :- "कहाँ रखोई थी सुई ?"
बढिया :- "मर में खोई थी !' लोग :-- "तो उस पर में क्यों नहीं ढूंढ रही हा ?" बुढिया :- "इसलिए कि घर में प्रकाश नहीं है !"
बुढिया की मूर्खता पर हमें हँसी आती है; परन्त भीतर सुख न देखकर उसे बाहर खोजनवाले हम भी उस बुढिया से किसी तरह कम मूर्ख नहीं ठहरत !
सहिष्णुता और क्षमा में ही मानसिक शान्ति का निवास होता है । एक व्यक्ति किसी ज्ञानी को कुद्ध करने के प्रयास में मनमानी गालियाँ बकता रहा - निन्दा करता रहा - आरोप लगाता रहा; किन्तु ज्ञानी शान्तिपूर्वक सहता रहा । जब बकझक करक वह चुप हुआ, तब ज्ञानी ने उसे जल से भरा हुआ एक लोटा देते हुए कहा :- “लो भैय्या ! यह जल पी लो। बहुत देर से भाषण कर रहे हो । गला सूख गया होगा।"
यह सुनकर वह व्यक्ति पानी-पानी हो गया । जल पीने के बाद उसे विचार आया कि यह तो मुझे पराजित करने की एक चाल मात्र है । मैं इस चाल में क्यों फV
फलस्वरूप वह और भी जोरों से चिल्लाने लगा । ज्ञानी मस्कुराता
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