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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सजन जैसा सोचते हैं. वैसा ही बोलते हैं और जैसा बोलते हैं, वैसा ही करते हैं; परन्तु दर्जन सोचत कुछ हैं, कहते कछ दूसरा ही हैं और करते कुछ तीसरा ही है; इसीलिए वे विश्वासपात्रा नहीं हो पात । अनुभवी सजना के वचन जीवन को प्रकाश देते हैं - नई दिशा दिखाते हैं- मार्गदर्शन करते हैं: अत: प्रतिदिन कुछ समय सत्संग के लिए निकालना चाहिए । जगन में धनिक भी द:खी हैं और निर्धन भी । एक अधिक खाकर मरता है और दूसरा भरखा मर जाता है; परन्त ज्ञानी सनन को छाड़ कर कोई सखी नहीं है । "तिन्नाण तारयाण" ज्ञानी स्वब तरन ही है दसरों को भी तराते हैं । ज्ञान के साथ क्रिया भी जरूरी है : ज्ञानक्रियाम्या मोक्षः ।। ज्ञान और क्रिया के दो परखा पर उड़कर हो सजन रूपी पक्षी मोक्ष तक पहुँचता है । ज्ञान की लॉ के साथ ज्ञानी क्रिया का तेल भरना नहीं भूलते । क्रिया अथवा सदाचार रूपी तेल क बिना ज्ञान का दीपक कब तक टिमटिमाना म्हणा ? ज्ञान की दृप्ति क्रिया के आहार (सदाचार) से ही होती है । आन प्रभ की पवित्र वाणी के श्रवण से आता है । वागी ज्ञानी गरदा सन्तान हैं । वाणी सनकर उसके अनुसार आचरण किया जाय ता आत्मा उन्नति क उत्तुंग शिखर पर चढ़ने लगी । प्रभ की पवित्र वाणी जहाँ वरसती हो, वहा तत्काल उससे मस्तिष्करूपी टकी भर ना चाहिए। फिर गरु वियोग होने पर (विहार कर जान पर) टंकी वाली जाय और ज्ञान रस का उसस पान किया जाय । गदेव अभाव में उनक प्रवचनों के संकलन पस्तका के रूप में उपलब्ध हो हो अवकाश के समय उनका बार- बार स्वाध्याय किया जा सकता है इस प्रकार उपदेशामत में मन को नहलाकर उसे पवित्रा करने का प्रयास गमा कर सकते है, जिससे सम्यक्त्व का सर्जन हो और मिथ्यात्व का विराजन। जड हीरा परखने की योग्यता पाने के लिए जौहरी को हजार दिन लग जाते हैं ना सचेतन आत्मा को परखने की योग्यता क्या आसानी से मिल जायेगी ? सातकोतर परीक्षा उत्तीर्ण कर के उपाधिधारी (एम ए.) बनन क For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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