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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यदि उसे हटाया जाय तो वह टूट जाता है- मर जाता है । करुणाई कुमारपाल ने उसके दंशकी वेदना सह ली। इतना ही नहीं, बल्कि मांससहित अपने शरीर की वह चमडी काट कर अलग कर दी। इस प्रकार उसे खुराक सहित अभयदान किया । चरमतीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी ने एक बार पूणिया श्रावक की सामायिक के फल की प्रशंसा की थी। महाराज श्रेणिक उस श्रावक की एक सामायिक का फल पाने के लिए अपना समस्त राज्यवेभव छोडनेको तैयार हो गये थे, परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली । इससे जाना जा सकता है कि सामायिक का स्थान कितना ऊंचा है कष्टों को जो शान्तिपूर्वक सहन करता है, वही कुटिल कर्मो का दहन कर सकता है । बाईस परीस हों और विविध उपसर्गो को शान्तिपूर्वक सहन करके ही प्रभु महावीर कर्म निर्जरा के द्वारा आत्मशुद्धि कर सक केवलज्ञान पा सके मोक्ष में जा सके । । पृथ्वी सहन करती है, ईसीलिए फसलें पैदा करने में सफल होती है । माता सहती है, इसीलिए पूजनीया मानी जाती है । पत्थर सहता है (छेनी के प्रहार), इसीलिए प्रतिमा के रूप में अर्चित होता है । साधु सहता है; इसीलिए सम्माननीय बनता है । महात्मा सुकरात की पत्नी झेंथापी बड़ी कर्कशा थी । एक दिन क्रद्ध होकर वह बकझक करने लगी। उसके शब्दों पर उपेक्षा करके महात्माजी एक पुस्तक पढ़ते रहे । इससे वह और अधिक चिड़ गई। थोड़ी देर बाद पुस्तक रखकर जब वे घर से वाहर निकलने लगे, तभी रसोई घर का गन्दा पानी बाल्टी में भर कर पत्नी ने उनक शरीर पर उड़ेल दिया । इस पर महात्मा सुकरात ने हँस कर कहा :- "बादल पहले तो गरजे और फिर बरस पड़े !” इससे पत्नी का गुस्सा शान्त हो गया और वह भी खिलाकर हँस पड़ी। यह था सहनशीलता का चमत्कार ! कहने का तात्पर्य यह है कि नमस्कार के द्वारा अहंकार पर और सामायिक से प्राप्त सहिष्णुता या समता के द्वारा ममता पर विजय पाकर ही साधक अपनी आध्यात्मिक साधना में सफल होता है; अन्यथा नहीं । For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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