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कुछ पर्व
प्रभु ऋषभदेव को बारह महीनों तक शुद्ध आहार नहीं मिला । धेर्य के साथ क्षुधा परीषह वे सहते रहे । इस तपस्या से कर्मक्षय का सहज अवसर मिला रहा है- यह मानकर मन-ही-मन वे सन्तोषामृत का पान करते रहे । __ अन्तमें वैशाख शुक्ला द्वितीया की रात्रि को देखे एक स्वप्न के अनुसार श्रेयांसकुमार ने तृतीया को गन्ने के रस से उन्हें पारणा कराया । तब से वर्षीतप के पारणे इसी अक्षय तृतीया के दिन होते हैं । वर्षी तप धैर्य और समता का रसायन है । तप से शरीर भले ही क्षीण हो जाय, परन्तु आध्यात्मिक गुणों में वृद्धि के कारण मुखमण्डल पर तेजस्विता छा जाती है । __ भगवान् महावीर ने अपने जीवन के अन्तिम सोलह प्रहर तक अखण्ड देशना दी । वह देशना उत्तराध्ययनसूत्रा के छत्तीस अध्ययनों के रूप में
आज भी हमारे सामने मौजूद है। .. ब्राह्मण देवशर्मा को प्रतिबोध देने के लिए प्रभु ने अन्तिम समय में अपने प्रिय शिष्य गौतम को भेज दिए । आज्ञा, विनय और अनुशासन के मूर्तरूप गौतमस्वामी चले गये और इधर दीपक का निर्वाण हो गया । ज्ञान ज्योति बुझने पर लोगोंने दीपक प्रज्वलित किये । घरों में दीपक की कतारें लगा दीं; इसीलिए वह दीपावली कहलाई ।
प्रभु ने निर्वाण पाया- ऐसा सुनते ही गौतम स्वामी छोटे बच्चे की तरह रोने लगे। उनके आँसुओं से उनके मन का राग धुलने लगा। रातभर चिन्तन करते रहे और प्रात: काल होते ही उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया। इस प्रकार सर्वत्र हर्ष छा गया। महावीर स्वामी के बाद गौतमस्वामी के रूप में उस दिन समाज को नया धर्मोपदेशक मिल गया था ।
यद्यपि ज्ञान, दर्शन, चारित्रा और तप की आराधना के लिए कोई निश्चित तिथि नहीं होती, निरन्तर इन गुणों की साधना की जा सकती है; फिर भी श्रुतज्ञान की आराधना के लिए आचार्यों ने वर्ष में एक तिथि निर्धारित कर दी है, जिसे “ज्ञानपञ्चमी' कहते हैं ।
उस दिन तीन प्रकार से ज्ञान की पूजा की जाती है :(क) ज्ञान के साधक की पूजा (ख) ज्ञान के साधनों की पूजा (ग) ज्ञान की पूजा
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