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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देहश्चितायां परलोक मार्गे कर्मानुगो गच्छति जीव एकः ।। [धन जमीन में (पहले बैंक नहीं थे । धन जमीन में गाड़ दिया जाता था ।), पशु बाड़े में, पत्नी घरके दरवाजे तक, कुटुम्बी श्मशान तक और शरीर चिता तक ही अपने साथ रहता है । उसके बाद कर्मो की गठरी उठा कर जीव अंकला ही जाता है । दूसरा कोई भी उसके साथ नहीं जाता । मोहान्ध बिल्वमंगल मुर्द को तेरता हुआ लकडी का पटिया समझता हे और विषधर साँप को रस्सी ! वह भूल जाता है कि जिस रूप रंग और यौवन पर में आसक्त ह वह नश्वर हे । अहंकार रूपी वृक्ष पर ममता की हरियाली छाई रहती है और दुर्गुण रूपी विविध पक्षी वहाँ आकर अपने घोंसले बना लेते हैं । एसी स्थिति में सद्गुरूदेव का सत्संग ही सद्गुणों की सुगन्ध से जीवन को सुवासित कर सकता है. ममता के स्थान पर समता की स्थापना कर सकता है अहंकार के स्थान पर नमस्कार महामन्त्रा को प्रतिष्ठित कर सकता है। ___ चातुर्मास में जिस प्रकार कृषक धरती की खेती करता है, उसी प्रकार धार्मिक जीव आत्मा की । आत्मा को कोमल बनाने के लिए वह सामायिक करता है, जो साधना का प्रथम सोपान है । स्थिर दीपशिखा सुन्दर लगती है । स्थिर मनोवृत्ति भी उससे कम सुन्दर नहीं होती । मन को शान्त और स्थिर करने के लिए सामायिक की जाती है । समुद्रतल में डुबकी लगाकर गोताखोर जिस प्रकार मोती प्राप्त करता है, उसी प्रकार साधक सामायिक द्वारा अन्त:करण में डुबकी लगाकर शुद्ध आत्माको प्राप्त करता है । मोती पाने पर जितना आनन्द गोताखोर को मिलता है, उससे अनंत गुना अधिक आनन्द आत्मदर्शन से होता है । सामायिक का साधक चरबीवाले वस्त्र, कॉडलीवर आईल, क्रम के बूट आदि हिसाजन्य साधनों का उपयोग नहीं करता । उसका आदर्श होता हे - “साधा जीवन उच्च विचार !" वह शरीरको नहीं, आत्मा को ही अलंकत करने का ध्यान रखता है। उसक मुखमंडल पर ब्रह्मचर्य का तेज होता है । उसक जीवन में पवित्रता की सुगन्ध होती है । कारुण्य भाव उसक अन्तस्थल स छलकता रहता है । सामायिक में बैठे हुए महाराज कुमारपाल को एक मकोडे ने काट लिया । चमड़ी में मकोड़ा अपनी अगली टाँग इस तरह चुभो देता है कि For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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