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अहंकार और ममता
अहंकार और ममता मोहराजा के दो महामन्त्री हैं । जहाँ नमस्कार है, वहाँ साधना है और जहाँ अहंकार है, वहाँ विराधना है । इसी प्रकार समता से साधना और ममता से विराधना का सम्बन्ध है ।
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जीवन रूपी दूध को अहंकार की फिटकरी का टुकड़ा फाड़ देता है। इससे विपरीत नमस्कार या विनयधर्म रूपी मिश्री का टुकड़ा जीवनरूपी दूध को मधुर बना देता है ।
बाहुबली ने दुष्कर तप किया था; किन्तु मन में अहंकार था; इसलिए केवलज्ञान प्राप्त न हो सका। फिर ब्राह्मी और सुन्दरी नामक अपनी साध्वी बहिनों से जब यह सुना :
"वीरा ! म्हारा गज थकी उतरो गज चढयाँ केवल न होय ।।”
(हे मेरे भाई ! हाथी से नीचे उतरो; क्योंकि जो हाथी पर बैठा रहता है, उसे केवलज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता ।)
तब तपस्यारत महामुनि को यह समझ में आया कि में जिस हाथी पर सवार हूँ, वह सूँडवाला पशु नहीं, किन्तु अहंकार है, जो मेरे केवलज्ञान में बाधक है । मेरी इस तपस्या के मूल में ही अहंकार है । मैं अपने पूर्वदीक्षित भाइयों को वन्दन करने से बचने के लिए तपस्या के द्वारा केवलज्ञान पाने के प्रयत्न में लगा था । ये साध्वी बहिनें ठीक ही कह रही हैं । मुझे अहंकाररूपी हाथी से नीचे उतरना ही होगा ।
ऐसा सोचकर अपने दीक्षित लघु भ्राताओं को वन्दन करने के लिए ज्यों ही उन्होंने कदम बढाया कि तत्फाल उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया ।
इसी प्रकार गणधर भगवंत गौतमस्वामी के केवलज्ञान में ममता बाधक थी । उनमें अहंकार तो बिल्कुल नहीं था; परन्तु प्रभु महावीर के प्रति राग था तीव्र अनुराग था ममता थी । यही कारण है कि प्रभु का निर्वाण होने के बाद वे रोने लगे । फिर चिन्तनने पलटा खाया । रुदन की व्यर्थता समझ में आई । परमात्मा की वीतरागता की पहिचान हुई और तब केवलज्ञानी बने ।
आत्माकी भी पहिचान न होने से कैसी दुर्दशा होती है ? एक दृष्टान्त द्वारा यह बात स्पष्ट होगी ।
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