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सुअर को कीचड़ से निकालने के प्रयास में लिंकन की पोशाक पर कीचड़ क छींटे लग गये; परन्तु क्या करते ? अब इतना समय नहीं था कि पन: पर जाकर पोशाक बदली जा सक । समय पर मीटिंग में पहुँचना जरुरी था । वे तुरन्त कारमें सवार होकर मीटिंग में गये और उन्होंने भाषण भी दिया ।
लोगों ने कीचड़ से भरी भव्य पोशाक का कारण जब उनसे सेक्रटरी से पूछकर जाना तो सब सदस्यों की ओर से एक व्यक्तिने खडे होकर उनकी परोपकार परायणता की प्रशंसा की; परन्तु राष्ट्रपति ने उसका उत्तर देते हुए कहा :- 'आप व्यर्थ मेरी प्रशंसा कर रहे हैं । मेने कोई प्रशंसनीय कार्य नहीं किया है । सूअर को तड़पते हुए देखकर मेरे दिल में जो दु:ख हुआ था, उसी दु:ख को मिटाने के लिए मैंने उसे बाहर निकाला था !"
राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के दिलमें जो दुःख हुआ था, उसे जैनशास्त्र के शब्द में अनुकम्पा कहते हैं - यही दया है, जो धर्म की माता है ।
"धम्मस्स जणणी दया ।।"
दया करने के लिए होती है, कवल कहने-सुनने के लिए नहीं । विषय कषाय से रहित निर्मल मन में ऐसी अनूकम्पा आसन जमाती है ।
करुणा क सरोवर प्रभु महावीर की सौम्य शान्त मुद्रा भी मन में पवित्र भाव जगा सकती है । आईकमार को पेटी में से जिन प्रतिमा प्राप्त हई । इससे पहले उन्होंने कभी प्रतिमा क दर्शन नहीं किये थे । प्रतिमा की शान्त मुद्रा का उनके हृदय पर क्या प्रभाव हुआ और वे किस प्रकार आत्मोदधार के लिए तत्पर हो गये- सो आप सब जानते हैं
निर्मल अन्त:करण में मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ्य भावनाओं का अमृतरस भर जाता है, तब मन अपनी चंचलता का त्याग करक धर्म में स्थिर होता है और निरन्तर प्रसन्न रहता है :
प्रसादे सर्व दु:खाना हानिरस्योपजायते । पसन्नचेतसो ह्याशु
बुद्धिः पर्यवतिष्ठते । (प्रसन्न मन में समस्त दु:ख समाप्त हो जाते हैं । जिसका चित्त प्रसन्न रहता है, उसमें शीघ्र बुद्धि का निवास होता है ।)
गीता के इस श्लोक से मालूम होता है कि बुद्धिमत्ता के लिए भी मानसिक प्रसन्नता आवश्यक है । प्रसन्नता से शारीरिक और मानसिक-दोनों प्रकार का स्वास्थ प्राप्त हो सकता है ।
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