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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. प्रभु का स्मरण न करते विषयों का स्मरण करनेवाले की दुर्दशा केसी यह जानने के लिए गीता के दो श्लोक देखिये : हीती है ध्याय तो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते । सङ्गत्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ।। क्रोधाद् भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः । स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २/६२ २/६३ [ पुरुष यदि विषयों का ध्यान करता है तो उससे उनमें आसक्ति हो जाती है । आसक्ति से काम, काम से क्रोध, क्रोध से मोह, मोह से स्मृति का नाश, उससे बुद्धि का नाश और बुद्धि के नाश से उस पुरुष का सर्वनाश (पतन) हो जाता है । ] सभ्य व्यक्ति जिस प्रकार बिना काम के आदमीयों को भवन में नहीं आने देता. उसी प्रकार व्यर्थ के विचारों को मनमें मत आने दीजिये । भौतिक मनोहर वस्तुओं के प्रति मोह नष्ट हुआ कि आपका दुःख भी गायत्र हो जायेगा : “दु:क्ख हयं जस्स न होइ मोहो ।।" उत्तराध्ययन सूत्र ३२/८ (जिस में मोह नहीं होता, उसका दु:ख नष्ट हो जाता है । ) दु:ख नष्ट होने पर मन में प्रसन्नता उत्पन्न होगी । किसका दु:ख ? अपना दु:ख मिटाने का प्रयास तो सभी प्राणी करते हैं. परन्तु महापुरुष वह है, जो दूसरों के दुःख को भी अपना दुःख समझकर उसे मिटाने का प्रयास करे । अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का उदाहरण इस विषय में सब से लिए प्रेरणादायक है ! For Private And Personal Use Only एक दिन घर से निकलकर किसी महत्त्वपूर्ण मीटिंग में शामिल होने जा रहे थे । मार्ग में एक ओर पल्लव के कीचड़ में फँसकर बाहर निकलने के लिए छटपटाने वाले एक सूअर पर उनकी नजर पड़ गई। वे तत्फाल उसके समीप जा पहुँचे और खींचकर उसे बाहर निकाल दिया। मन ही मन उस मूक पशु ने कितनी शुभकामनाएँ राष्ट्रपति के लिए व्यक्ति की होंगीइसकी कल्पना कोई दुःखमुक्त व्यक्ति ही कर सकता है । २०
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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