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कहा गया हैं :
“पुरुषा वै शतायुद्र।।" (पुरुष सौ वरस तक जीवित रहता है ।)
भारतीय सभ्यता और संस्कृति ही इस लम्बी आयु का प्रमुख कारण थी । असामयिक मृत्यु को अशुभ माना जाता था । विषय-कषाय से रहित शान्त जीवन ही आदर्श था । ___आज केसा है ? आज का जीवन आधि व्याधि-उपाधि से लदा है। चिन्ता चिता की तरह जलाती है- रोग आग की तरह झुलसाते हैं और अन्य कष्टों का भय आयु को घटाता है ।
भय पर जय पाने क लिए हमं “अभयदयाण" (अभयदाता) परमेश्वर की शरण में जाना पड़गा । उससे मानसिक और शारीरिक दोनों तरह का स्वास्थ्य प्राप्त होगा ।
विषय प्राप्ति की चिन्ता से ऊपर उठकर हमें प्रभु के स्वरुप का चिन्तन करना है । चिन्तन में विवेक, विनय, निर्भयता और प्रसन्नता का प्रकाश है. जो आय का लम्बी बनाता है ।
पुण्य क द्वारा मनुष्य भव में पूर्णआयु भोगी जाती हैं ।
मन सहित पाँचों इन्द्रियों में जो पटुता है, उसे हम कटुता में परिवर्तित न होने दें- प्राप्त पटता क लिए प्रबल पुण्य का आभार मानें और इन्द्रियों की तथा मन की पवित्रता टिकाये रक्खें तो निश्चय ही हमारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य विकसित और विलसित होगा ।
वैसे देखा जाय तो शरीर का स्वास्थ्य मन के स्वास्थ्य पर अवलंम्बित है । कहा भी है किसी ने : - “जिसका मन साफ है, उसका जीवन स्वर्ग है और जिसका मन मैला है, उसका जीवन नरक !" __मन मेला होता है- कषाय से । कषाय चार हैं- क्रोध, मान, माया
और लोभ । यहाँ मान का अर्थ अभिमान या घमण्ड है । माया का अर्थ है- छल । क्रोध और लोभ का अर्थ स्पष्ट है - सब लोग समझते हैं । इन चारों कषायों से रहित मन निर्मल होगा; परन्तु निर्मलता ही पर्याप्त नहीं है । निर्मल जल भी यदि उष्ण हो- खारा हो- दुर्गन्धित हो तो पीने योग्य नहीं माना जाता । निर्मलता के साथ शीतलता, मधुरता और सुगन्ध भी देखी जाती है ।
उसी प्रकार निर्मल मन में (कषायों से अकलुषित अन्त: कारण में) मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ्य- इन चार भावों के दर्शन किये जाते हैं :
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