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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंजना सुसराल और पीयर से अपमानित होकर अंजना जंगल में चली जाती है और वहाँ पंक हुए, पड़ो के फलों तथा बहते हुए झरने के निर्मल जल का उपयोग करती हुई निर्भयता और शान्ति से अपने गर्भस्थ शिशु का पोषण करती है । पुण्योदय से एक दिन चार ज्ञान के धारक महामुनि विद्याचरण के दर्शन होते हैं । __ श्रद्धापूर्वक वन्दन करके ज्ञानी गुरुदेव से अंजना पूछती हैं :"भगवन ! कृपा करके मुझे अपने पूर्वभव का वृत्तान्त बताईये, जिससे मैं समझ सकू कि इस भव में मेरा इतना अपमान क्यो हुआ ? क्यों मुझे इतना दु.ख उठाना पड़ा ?" गुरुदेव बोले :- “बहन ! वृत्तान्त सुनाने से पहले में तुम्हें एक खुशखबर सुना देना चाहता हूँ कि तुम्हारे उदर में जो जीव पल रहा है, वह अत्यन्त पुण्यशाली है । पिछले पाँच भवों से वह धर्माराधना करता आ रहा है और यह उसका चरम शरीर है। इसी भव में वह कवलज्ञान प्राप्त करक मोक्ष जानवाला है ।" यह सुनकर अंजना को असीम सुख का अनुभव हुआ; फिर भी अपना पूर्वभव जानने की उत्सुकता उसमें बनी रही । मुनिवर ने उसकी उत्सुकता को शान्त करने के लिए पूर्वभव का वृतान्त सुनाना प्रारम्भ किया । बोले :- “एक राजा थे- कनकराय । दो रानियों के पति थे । एक रानी का नाम था.. कनकोदरी और दूसरी का लक्ष्मीवती । "तस्यासीत् गहिनी लक्ष्मी लक्ष्मीलक्ष्मीपतेरिव ॥" उसकी रानी लक्ष्मी साक्षात् लक्ष्मीपति (विष्णु) की लक्ष्मी के समान सुन्दर थी । राजा उसकी सुन्दरता पर मुग्ध थे । यही कारण था कि वे लक्ष्मीवी को अधिक चाहने लगे थे। इससे कनकोदरी के मन में ईष्याग्नि भड़क उठी । वह उसे परेशान करके सन्तोष का अनुभव करने लगी । लक्ष्मावती प्रभु की एक प्रतिमा का प्रतिदिन भक्तिभाव से पूजन किया करती थी । कनकोदरी ने एक दिन उस प्रतिमा को घूरे के ढेर में ले जाकर छिपा दिया । बाईस घंटे तक उसके वियोग में लक्ष्मीवती तड़पती १०५ For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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