________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रही । लेकिन फिर कनकोदरी को पस्तावा झान सं प्रतिमा लौटा दी । है बहन ! पूर्वभव की वह कनकोदरी ही तू है । बाईस गंट तक तून लक्ष्मीवती को उसकी प्रिय पतिमा से वियुक्त रक्खा; इसीलिए इस भव में त अपने प्रियतम से बाईस वर्षो तक वियुक्त रही । वियाग की वह अवधि अब लगभग समाप्ति पर है । अब शीध्र ही गत क बाद जिस प्रकार अरुणोदय होता है, वैसे दु:ख के बाद तुम्हारे सुख क दिन आनेवाले है ।।
ऐसा कह कर मुनि चले गये । इमर सवा नौ मारा पूर्ण होने पर अंजना ने एक तेजस्वी पुत्र रत्न को जन्म दिया; किन्तु ऐसे लगल में जन्मोत्सव मनाने के लिए फटी थाली बजान वाला भी कोई नहीं था । अपने इस दुर्भाग्य पर वह सिसकियां भर-भर कर रोन और विलाप करने लगी।
उसी समय प्रतिसूर्य राजा अपने विमान में बैठकर आकाश मार्ग से कहीं जा रहा था । विलाप की ध्वनि सुनते ही उसने विमान को नीचे उतारा । बातचीत से पता चला कि अंजना उसकी भानजी थी । बडे प्रेम
और हर्ष से दोनों को विमान में बिठा कर वह अपनी राजधानी के गजमहल में ले जाता हैं । ___कहावत है- “जैसी सीप, वैसा मोती । इस क संयम क बाद यह शिश तेजस्वी माता से उत्पन्न हुआ था; इस लिए माता के ही समान उसके मुखमण्डल पर भी तेजस्विता चमक रही था । इस शिशु का नाम रखा जाता है .. हनुमान ।
उधर युद्ध में शानदार विजय प्राप्त करक अंजना क पति पवंजयकुमार जब अपनी राजधानी में लौटते हैं तो सारे नागारक उन पर फलों की बरसात करके उनका स्वागत करते हैं। कुमार राजमहल में पहचकर माता-पिता को प्रणाम करते हैं और फिर सीधे अंजना क कमर को और बढ़ जातं
उस कमर का बन्द द्वार खोलते हैं ता पता चलता है कि उसका आगमन में एक-एक इंच धूल जमी हुई है । व भावक होकर इधर-5 पर नजर दौडाते हैं और पुकारते है - “अंजना ! - -- -- -- अंजना ! . कहा हो अंजना ? .... मेरी आँखे तुम्हें देखने क लिए तरस रही हैं ! जदा आओ ... सामने आओ .... इन आँखों की प्यास बझाजी ।"
परन्तु इस चीख-पुकार का उन्हें कोई उत्तर नही मिलना । गते हु वे माँ के पास लौट आत हैं और अंजना क विषय में पूछते हैं । माँ कहती हैं -- “नाम मत लो उस कुलक्षणा का ! जिसन अपने कुकर्म से दोनों कुलों का यश मिट्टी में मिला दिया है । विवाह के बाद कभी तुमने १०६
For Private And Personal Use Only