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(७) आज वैज्ञानिक सामग्री के आविष्कारों से सुख पाने की लालसा के कारण टेलीवीजन, रेडियो, कार, रेफ्रीजरेटर, स्टीरियो, केसेट टेपरिकार्डर आदि में हजारों रूपये लोग खुशी से खर्च कर देते हैं; परन्तु परोपकार या सार्वजनिक हित के कार्यो पाँच-दस रुपये भी बहुत मुष्किल से देते हैं।
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(८) नीम के पेड़ दुनिया में अधिक हैं, आम के कम कांटे अधिक हैं, फूल कम पत्थर अधिक हैं, रत्न कम ! उसी प्रकार दुर्जन अधिक हैं, सज्जन कम । दुष्ट हमेशा शिष्टों को परेशान करते रहते हैं । कुछ लोगों की आदत ही होती है कि जब तक किसी से झगड नहीं लेते या दस-पाँच गालियाँ नहीं बक लेते, तब तक उन्हे भोजन ही नहीं भाता !
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भविष्य के इस चित्रण को (जो इस समय हम देख रहे है' ) स्वप्न फल के रूप में सुनकर संसार से पुण्यपाल को विरक्ति हो गई। उन्होने प्रभु महावीर से संयम ग्रहण करके आत्मकल्याण के पथ पर कदम बढा लिया । धन्य हो गया- उनका जीवन !!!
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