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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुगन्ध का अभाव है । इससे विपरीत कूड़े के ढर पर खिल हए कमलों में भरपूर सुगन्ध है । - उत्तम देश और उञ्च कुल में उत्पन्न पुरुष अधार्मिक होंग । इससे विपरीत साधारण देश- कुल में उत्पन्न पुरुष धार्मिक होंगे । सातवाँ सपना :- एक किसान उर्वर भूमि में उगनेत्राला उत्तम बीज और उर्वर भूमि में, न उगने वाला खराब बीज बो रहा है - अच्छे परोपकार क पवित्रा कार्यो में धन का दान न करक लोग भोग-विलास के अपवित्र कार्यो में ही धन खर्च करेंगे । ___ आठवाँ सपना :- कमल की पंखुरियों में (चांदी का) श्वत कलश गन्दे जल से भरा हुआ है । पत्ते उस पर चिपटे हुए हैं । - सुन्दर पोशाक धारण करने वालों के दिल में दुर्भावना रहती । सजन कम होंग, दुर्जन अधिक । दुर्जन सर्वत्र सजनों को सतायंगे । महाराज पुण्यपाल को सपनों का जेसा आशय बताया गया था, संक अनुसार हमें आज सारे दृश्य दिखाई दे रहे हैं । जेसे : (१) मनुष्य सदा भोग के ही विचार करता है । भोगोपभोग की सामग्री जुटाने के ही लिए धनोपार्जन करता है । इस बात को वह भूल जाता है कि धनमें सख नहीं है - जनयन्त्यर्जने दुःखम् तापयन्ति विपत्तिषु । मोहयन्ति च सम्पतौ कथमर्थाः सुखावहा: ।। (जो धन कमाते समय दु:ख देते हैं - संकटों में सन्तप्त करते हैं और सुख में मोहित करते हैं, वे सुखद कैसे हो सकते हैं ?) धन साध्य नहीं है। वह परोपकार का साधन है। सत्कार्यो में उसका त्याग करना चाहिये । लोगों के हृदय में त्याग का विचार उठता तो है, परन्तु स्वार्थ के कारण वह टिक नहीं पाता । (२) आज कितने अधिक आचार्य हो गये हैं ? देखिये । एक म्यान में जिस प्रकार दो तलवारें नहीं रह सकती; एक जंगल में जिस प्रकार दो सिंह नहीं रह सकते; उसी प्रकार एक धर्मस्थान में एक साथ दो आचार्य नहीं रह सकते । प्राचीन काल में यह समस्या बिल्कुल नहीं थी, क्योंकि तब एक समय में एक ही आचार्य होते थे । आज की तरह जैन धर्म के भिन्न भिन्न १०२ For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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