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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुण्यपाल महाराजा महाराज पुण्यपाल आठ स्वप्न देख कर एक दिन प्रात: उठे । प्रारंभिक क्रियाओ से निवृत्त होकर वे प्रभु महावीर के दर्शन, वन्दन और प्रवचन श्रवण के लिए पहूँचे । प्रवचन समाप्त होने के बाद उन्होंने अपने सपने सनाये ! उन सपनों का आशय प्रकट करने के लिए उन से जो कुछ कहा गया, उसका सारांश इस प्रकार हैं : - ‘पहला सपना :- एक विशालकाय हाथी, जिसे बड़ी गजशाला में बाँधा गया था, बन्धन छुडाकर पुरानी छोटी गजशाला में चला जाता है ।। -- ससारी प्राणियों को त्याग का मार्ग रूचेगा नहीं । वे भोग मार्ग में भटकंगे । यदि त्याग का विचार कभी आ भी गया तो वह टिंकगा नहीं । दूसरा सपना :- एक छोटा बन्दर किसी बड़े बन्दर से झगड़ रहा है । भविष्य में होने वाले आचार्य परस्पर हिल मिलकर नहीं रह सकेंगे। तीसरा सपना :- कल्पवृक्ष के फल आसपास की बागड़ में गिर जाते हैं, जिससे लोगों को वे मिल न सक ___- लोग दान तो अवश्य करेंगे; किन्तु उसका लाभ कुपात्र ही उठायेंगे । सुपात्रदान नहीं के बराबर होगा । चौथा सपना :- सन्दर सरोवर के तट पर बेठा हुआ एक कौआ निकट ही बहते हुए गन्दे नाले का जल पीता है और पनिहारिनों के सिरपर रहे हुए पड़ो का जल अपनी चोंच से अशुद्ध कर देता है। - पर का पवित्र भोजन लोगों को पसंद नहीं आयगा और बाहर (होटल आदि) के अपवित्र भोजन को भी वे खुशी से खायँगे । साधु और श्रावक किसी का उपदेश सनना नहीं चाहेंगे । जाति और समाज के बन्धन शिथिल होते जायेंगे । __ पाँचवाँ सपना :- एक जंगल में कोई तेजस्वी सिंह मरा हुआ पड़ा है। उसे देखकर सियार भाग जाते हैं; किन्तु उसी (सिंह) के शरीर में उत्पन्न कीड़े उसे नोंच-नोंचकर खा रहे हैं । - तीर्थंकर, केवली, गणधर, चौदह पूर्वधर जैसे महाज्ञानियों के अभाव में भी जैनशासन मौजूद रहेगा । मिथ्यात्वी उससे डर कर दूर भाग जायँगे; परन्तु आन्तरिक मत--भेदों से वह छिन्न-भिन्न होता रहेगा । छठ्ठा सपना :- कीचड़ में कोमल कमल खिल रहे हैं: परन्तु उनमें १०१ For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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