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- मोक्ष मार्ग में बीस कदम, निरीक्षक महोदय की निराशा और मानसिक व्यथा का कोई पार न रहा। वे वहाँ से संभागीय शिक्षा अधीक्षक के कार्यालय में जा पहुंचे। सम्पूर्ण बीती घटना सुन कर वे वोले:“जिला शिक्षाधिकारी की कार्यक्षमता पर मुझे पूरा विश्वास है। उन्होंने एक महिने की अवधि आपको दे दी है। आशा है, तब तक व्यवस्था अवश्य हो जायगी। आप निश्चिन्त रहें। एक महीने की अवधि तक प्रतीक्षा करने के बाद भी यदि व्यवस्था न हो सके तो दो-तीन महीने बाद आकर फिर से आप मुझे याद दिला दीजियेगा।"
निरीक्षक हैरान होकर सीधे शिक्षामन्त्री के सामने जा खड़े हुए। उन्होंने कहा :-- "पूरे प्रदेश की व्यवस्था करना कोई साधारण काम नहीं है। प्रतिवर्ष शालाओं में आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई की जाती है। भेजने में भी कई वस्तुएँ पहुँचने से पहले टूट जाती हैं; इसलिए जिस धनुष की आप चर्चा कर रहे हैं, वह हो सकता है, कहीं रास्ते में ही टूट गया हो । स्टेशनों पर हमाल कितने लापरवाह होते हैं ? यह तो आप जानते ही हैं। पार्सलों को इस तरह फेंकते हैं, मानो वे रूई की गाँठे हों। मैं आज ही रेल्वे-मन्त्री को पत्र लिखकर उनका ध्यान इस ओर
आकर्षित करता हूँ कि पार्सलों को पटके जाने के विरूद्ध वे हमालों को कड़ी चेतावनी दे। इससे शिक्षा-विभाग का और आम जनता का भी भला होगा । भेजा जानेवाला किसी का कोई माल किसी स्टेशन पर इस तरह टूट कर बरबाद न होगा, जिस प्रकार आपका शिवधनुष का हुआ है। मैं सोचता हूँ, रेल्वेमन्त्री के प्रयास से पूरे देश में यह व्यवस्था अवश्य हो जायगी-भले ही इसमें साल-दो साल लग जायँ । अन्तमें एक निवेदन है आपसे कि इस घटना की भनक अखबार वालों को न होने दें; अन्यथा वे इसे इस तरह उछालेंगे कि आम जनता में हमारी छबि गिर जायगी और पाँच वर्ष बाद होनेवाले आम चुनावों में हमें कोई वोट नहीं देगा।"
शिक्षामन्त्री महोदय का भाषण सुनकर निरीक्षक महोदय सीधे घर लौट गये । आधुनिक शिक्षा पर यह बहुत बड़ा व्यंग्य है। जिनका ज्ञान-वैराग्य ठोस न हो, उन्हें शिक्षक या गुरू बनने का कोई अधिकार नहीं। गुरुमहिमा को घटाने में ऐसे ही लोगों का हाथ रहता है।
जो गुरु गहरे ज्ञानी होते हैं, वे बहुत संक्षेप में अपनी बात कह देते हैं और जहाँ तक हो सकता है, प्रवचन से बचने का प्रयास करते है।
ऐसे ही एक गम्भीर ज्ञानी मुनि से लोगों ने आग्रह किया कि आप हमारे बीच प्रवचन करके हमें कृतार्थ करें। मुनि ने कहा :- “क्या आप लोग ईश्वर के विषय में कुछ जानते हैं ?"
श्रोताओं में से एक ने कहा :- "हम कुछ नहीं जानते गुरुदेव!" मुनि :- "नास्तिमूलं कुतः शाखाः?"
जहाँ जड़ का ही पता नहीं, वहाँ शाखाओं की आशा कैसी की जा सकती है ? बीज को ही अंकुरित किया जाता है। जब आप ईश्वर के विषय में कुछ जानते ही नहीं तो मैं क्या
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