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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir •गुरुमहिमा. निरीक्षक :- “सोचो याद करो। जो भी जानता हो, अपना हाथ खड़ा करे।" जब किसी ने हाथ खड़ा नहीं किया, तब उन्हों ने एक बड़े लड़के को खड़ा करके पूछाः"तुम बताओ।" उसने काँपते हुए कहा :- "सर! मैंने नहीं तोड़ा-यह निश्चित है। और किसी ने तोड़ा होगा तो मुझे नहीं मालूम; अन्यथा मैं उसका नाम आपको जरूर बता देता।" निरीक्षक ने अध्यापक की ओर देखा। अध्यापक घबराया। नौकरी का सवाल था। बोला:- “सर, इस कक्षा में कुछ शरारती छात्र हैं, हो सकता है, उन्हीं में से किसीने तोड़ दिया हो। मैं उनकी मरम्मत करके कल तक आपके सामने उसका नाम जरूर पेश कर दूंगा। अभी एकदम तो मैं भी नहीं बता सकता।' निरीक्षक खिन्न होकर प्रधानाध्यापक के कक्षा में गये । प्रधानाध्यापक खड़े होकर दूसरी कुर्सी पर बैठ गये और अपनी कुर्सी निरीक्षक महोदय के लिए खाली कर दी। वे उस पर बैठ गये। प्रयोजन पूछने पर निरीक्षक बोले :- “शाला का स्तर बहुत गिर चुका है!" प्रधानाध्यापक :- “जी हाँ, सर! यदि सरकार ने मरम्मत के लिए आर्थिक सहायता नहीं की तो यह शालाभवन गिर भी सकता है।'' निरीक्षक :- “अरे भाई! मैं तो शिक्षा के स्तर की बात कह रहा हूँ। एक कक्षा में जाकर आज एक साधारण सी बात पूछी; परन्तु कोई उत्तर ही नहीं दे सका!" । प्रधानाध्यापक :- “जी हाँ, आपके प्रश्न की आवाज मेरे कानों तक आ चुकी है। आप शिवधनुष तोड़ने वाले का नाम जानना चाहते हैं? क्या आपको शिवधनुष बहुत प्रिय था? क्या वह आपका ही था ?" निरीक्षक :- “मेरा शिवधनुष से कोई संबंध हो या न हो, मैं उसे तोड़ने वाले का केवल नाम पूछ रहा था, लेकिन छात्र तो छात्र ही ठहरे, खुद अध्यापक भी नहीं बता सके मुझे।" प्रधानाध्यापक :- “कोई बात नहीं। बच्चे ही ठहरे! खेलते-खेलते टूट गया होगा किसी के हाथ से।इस जरा-सी बात के लिए आप इतने नाराज क्यों होते हैं ? मैं शाला की आकस्मिकनिधि से अभी आपको पाँच रूपये दे देता हूँ। आप वैसा ही धनुष और बनवा लीजिये। तोड़नेवाले छात्र का नाम मालूम करके यह राशि हम उसके माँ-बाप से वसूल करते रहेंगे।" निरीक्षक महोदय पाँच रुपये का नोट प्रधानाध्यापक के मुँह पर फेंककर गुस्से में दाँत पीसते हुए सीधे जिला शिक्षाधिकारी के कार्यालय में पहुँचे। शिक्षाधिकारी महोदय ने सारी घटना ध्यान से सुनकर कहा :- "मैं अभी एक सर्म्युलर निकालकर जानकारी मँगवा लेता हूँ कि शालाओं में कहाँ-कहाँ कितने धनुष इस वर्ष भेजे गये। उनमें से कितने सुरक्षित हैं और कितने टूट गये। जितने भी टूट चुके होंगे, उतने नये बनवाकर उन-उन शालाओं को भिजवा दिये जायँगे। आप निश्चिन्त रहें। अधिक से अधिक एक महिने में यह व्यवस्था हो जायगी।" For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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