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• गुरुमहिमा. एक आदमी ने कहा “सफेद!" अन्धा :- “सफेद कैसा?" आदमी :- "बगुले के पंख की तरह।" अन्धा :- “बगुला कैसा?"
आदमी ने अपना हाथ बगुले की गर्दन के समान मोड़ कर बता दिया :- "बगुला ऐसा होता है!"
अन्धा उसे छूकर बोल उठा :- “हाँ-हाँ, अब मुझे समझ में आ गया कि प्रकाश कितना टेढ़ा होता है।"
आदमी ने अपना सिर ठोक लिया कि मैने क्या समझाना चाहा और यह क्या समझ गया। आखिर वैद्यने जब आँखें ठीक कर दी, तभी उसे प्रकाश का वास्तविक ज्ञान हुआ । संयम
और तप से जब मन ठीक होगा (निर्मल होगा), तभी आप को स्वयं आध्यात्मिक सुख की वास्तविक अनुभूति होगी।
यदि आप प्रश्न लेकर किसी साधु के समीप जायँ तो और कुछ अपने मनमें न ले जाय तभी समाधान मिल सकेगा।
एक आदमी ने गुरु को प्रणाम करके निवेदन किया :- "मेरे पास एक छोटा-सा प्रश्न है। आज्ञा हो तो पूछ ?'
गुरु :- “तुम आये कहाँ से हो?" आदमी :- “बम्बई से" गुरु :- “और जाओगे कहाँ ?' आदमी :-“ दिल्ली जाऊँगा।" गुरु :- “बम्बई में बासमती चावल का क्या भाव चल रहा है ?" आदमी :- “छह रुपये किलोग्राम।" गुरु :- "दिल्ली में बाटा के जूतों का क्या भाव है ?"
आदमी :- "टैक्ससहित एम्बेसेडर एक सौ छिहत्तर रुपये में मिल जाता है; किन्तु लेदर में नार्थ स्टार की जोड़ी एक सौ पैंसठ रुपये देने पर ही मिल जायगी। आपको कौन से जूते चाहिये?"
गुरु :- “मुझे न चावल चाहिये न जूते। मैं तो केवल तुम्हारे मन को टटोल रहा था कि उसमें क्या-क्या भरा है ? मैं ने पाया कि उसमें बम्बई, दिल्ली, बासमती और बाटा के जूते भरे हुए हैं। एक कोने में कहीं प्रश्न भी पड़ा होगा। समाधान तब होता है, जब मन में केवल प्रश्न हो, और प्रश्न के सिवाय कुछ न हो। सारा संसार साथ लेकर भगवान् के विषय
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