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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ■ मोक्ष मार्ग में बीस कदम साधु वकील हैं; क्योंकि वे युक्ति द्वारा संसार-कारागार के कैदी (जीव ) को मुक्त करने का भरपूर प्रयास करते हैं। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधु डॉक्टर हैं; क्योंकि वे भव्य प्राणियों के मानसिक रोगों को मिटाते है- उपचार करके उन्हें स्वस्थ करते हैं। साधु पोस्टमैन हैं, जो घर-घर जाकर महावीर स्वामी के सन्देशों को पहुँचाने का काम करते हैं । साधु भी यदि वैराग्यवान न हो तो साधुजीवन में भी पतन के पाँच कारण हैं - कौनसे ? प्रवचन, परिचय, पेपर, प्रसिद्धि और प्रशंसा । प्रवचन से वक्ता में अभिमान पैदा होता है। सुनने वालों से वह अपने को अधिक ज्ञानी मानता है; परन्तु सच्चा ज्ञानी वहीं होता है, जहाँ अभिमान बिल्कुल न हो । सन्त कवि तुलसी ने कहा है : ज्ञान, मान जहां एकहु नाहीं ॥ पतन का दूसरा कारण है- परिचय, गृहस्थों से अधिक परिचय साधुओं के लिए हितकर नहीं। डॉक्टर जब टी. बी. वार्ड में जाता है, तब जितना सावधान रहता है, उतना ही सावधान साधु को भी रहना पड़ता है, रहना चाहिये; अन्यथा इलाज करने वाला खुद ही बीमार हो जायगा । पेपर (अखबार) पढ़ने में स्वाध्याय का अमूल्य समय बर्बाद हो जाता है। उसमें नाम छपने से प्रसिद्धि मिलती है। उसका नशा दिमाग पर छाया रहता है, जैसे शराबी प्याले पर प्याला पीता रहता है, उसी प्रकार प्रसिद्धि के लिए साधु बार-बार अपना नाम पेपर में देखना चाहता है। जब दूसरे लोग पेपर में साधु का नाम छपा हुआ देखेंगे तो वे प्रशंसा करेंगे। प्रशंसा सब को प्रिय लगती है। जैसे इन्द्रियाँ विषयों में आसक्त होती हैं, उसी प्रकार मन प्रशंसा में आसक्त हो जाता है। इस प्रकार पाँचों कारण साधु को संयमी जीवन से नीचे गिरा देता हैं। साधुओं को इनसे बचने का प्रयास करते रहना है। साधु जिस आध्यात्मिक सुख का अनुभव करते हैं; वे उसका वर्णन तो कर सकते हैं; किन्तु आपको अनुभव करा नहीं सकते। अनुभव आपको स्वयं ही करना होगा । दूसरों को अनुभव कराने का प्रयास कितनी जटिलता में डाल देता है, सो एक उदाहरण से स्पष्ट होगा। ८४ दीवाली का दिन था । प्रत्येक घर, प्रकाश से सजाया गया था। लोग प्रकाश की प्रशंसा कर रहे थे। एक अन्धे ने पूछा : "भाई ! यह प्रकाश कैसा होता है ?" For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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