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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir • कर्त्तव्य ● अन्त में किसीने उसे पं. मोतीलाल नेहरूका नाम सुझाया। वे ठहरे इंडियन ! उन्हे आमन्त्रित करने का मतलब होता इंगलैंड के बैरिस्टरों का अपमान ! किन्तु महिला भी क्या करती ? " बखत पड़े बाँका तो गधेको कहें काका!' 19 विवश होकर उसने पं. मोतीलालजी नेहरू को केस लड़ने के लिए आमन्त्रित किया और स्पष्ट कर दिया कि मार्गव्यय के अतिरिक्त उन्हें मुँहमाँगी फीस भी दी जायगी। केस प्रीवी काउंसिल तक पहुँच चुकी थी। पंडित मोतीलाल नेहरू वहाँ पहुँचें । उन्हें केस की फाइल टी गई, परन्तु उन्होंने बिना देखे ही लौटा दी । केस की सुनवाई प्रारंभ हुई। पंडितजी प्रतिदिन कोर्ट में जाते और चुपचाप बैठकर सारी कारवाई देखते रहते; परन्तु वे कभी कुछ बोले ही नहीं । बैरिस्टरोंने सोचा कि बेचारा इंडियन बैरिस्टर है। कुछ समझमें ही न आया होगा; इसलिए मौन धारण करके बैठा है। महिला भी व्याकुल हो रही थी; क्योंकि मुकदमा अन्तिम स्टेजपर था। उसके बाद तो केवल ईश्वर के यहाँ ही अपील हो सकती थी । जजने पुकारा : - "सुनवाई का यह अन्तिम दौर है। आज किसीको किसी भी पक्ष में कुछ कहने की इच्छा हो तो कह दे । कल फैसला सुना दिया जायगा ।" इस पर उस महिला की तथा उसके प्रति सहानुभूति रखने वालोंकी आशाभरी निगाहें पंडितजी की ओर उठीं, परन्तु सबको निराशा ही हाथ लगी; क्योंकि वे मूर्त्तिवतू बैठे रहे, नहीं बोले । कुछ दूसरे दिन भरी सभा के बीच जजने निर्णय वही घोषित किया, जिसकी पूरी सम्भावना थी । हत्यारा निर्दोष मान लिया गया। उसे मुक्त कर दिया गया। उस विधवा महिला का चेहरा लटक गया। उसकी आँखोंसे आँसुओंकी धारा निकल पड़ी। ठीक उसी समय पंडितजी अपनी चेयर से उठे - मानो आग लगने के बाद कूँआ खोदने की चेष्टा कर रहे हों। वे धीरे-धीरे उस कटघरे की ओर बढे, जहाँ हत्यारा खड़ा था । आज वह बहुत खुश था; क्योंकि खूनी होकर भी वह मुसीबतसे बाल-बाल बच गया था। पंडितजी ने उससे हाथ मिलाया और बहुत-बहुत धन्यवाद देते हुए कहा :- "परमात्मा का आभार मानिये कि आप निर्दोष छूट गये। भविष्य में कभी ऐसी भूल न हो इसका ध्यान रखिये!" हत्यारा बोला :- "मैं कोई मूर्ख नहीं हूँ कि ऐसी गम्भीर भूल दुहराऊँ!” सब लोगोंने यह वाक्य सुना। पंडितजी ने जोर देकर कहा :- "लार्ड साहब! क्या अब भी इसके लिए कोई साक्षी चाहिये ? अपने ही मुँहसे हत्यारा स्वयं अपराध की गम्भीरता स्वीकार For Private And Personal Use Only ७९
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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