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- मोक्ष मार्ग में बीस कदम । कर रहा है!"
पासा पलट गया! कानून तो गवाहोंके पाँवपर चलता है। अपराधी स्वयं ही अपना प्रत्यक्षदर्शी गवाह बन गया। फिर क्या था? हत्यारे को प्राणदंड दिया गया। महिला का मन खुशी के मारे बाँसों उछलने लगा। इंग्लैंड के बैरिस्टर भारतीय बुद्धिमत्ता का लोहा मान गये। पंडितजीने अपना और देशका नाम रोशन किया।
तो यह है- बुद्धिका सदुपयोग। इसके लिए तन्मयता चाहिये- यदि मन में प्रमाद हो तो बुद्धि भी सोती रहती है।
बहुत-से लोग प्रवचन सुनने आते हैं और रात की कसर यहीं निकालते हैं; आराम से नींद लेते हैं। कभी अर्धनिद्रित अवस्थामें कोई शब्द कानमें चला गया तो उसका उल्टासुल्टा आशय समझ लेते हैं। एक मनोरंजक उदाहरण है – किसी वैद्यजी की माता का।
वह नियमित रूप से प्रवचन सुनने आती थी। गुरुदेव व्याख्यान में महावीर प्रभु का यह वाक्य जब जोर से गाकर सुनाते :
“समयं गोयम! मा पमायए।।"
तब उस बुढिया की थोड़ी-सी नींद टूटती और फिर ज्यों की त्यों जड़ जाती । प्रवचन में क्या विवेचन चल रहा है ? उसका उसे कोई भान नहीं था। वह तो “गोय मा!''को सुनकर समझती कि दुरूदेव किसी दर्द से कराह कर “ओय अम्माँ!" इस तरह पुकार रहे होंगे।
___ एक दिन उसने अपने बेटेको डॉटकर कहा :- “तू वैद्यराज होकर दूसरोंका इलाज तो करता ही रहता है; किन्तु कभी-कभी परोपकार भी कर दिया कर। इससे विशेष पुण्य होगा।"
___वैद्य :- “परोपकार के रूपमें मुझे किसका इलाज करना होगा माँ! तेरे ध्यानमें कोई बीमार हो तो बता, जिसके पास पैसा बिल्कुल न हो। मैं उसका बिना फीस लिये इलाज कर दूंगा।"
बुढिया :- “अपने गाँवमें जैन साधुओंका चौमासा चल रहा है। उन साधुओं में से एक साधु शास्त्रों पर प्रवचन करते हैं। उनके पेटमें दर्द है । बोलते-बोलते वे कराह उठते हैं- ओय अम्माँ !"
वैद्यजीने उपाश्रय में जाकर गुरुदेवकी नाड़ी देखी। वह ठीक चल रही थी। पूछने पर पता चला कि उनके पेटमें भी कोई दर्द नहीं है। वह हैरान हुआ। बोला :- “मेरी माँ कह रही थी कि प्रवचन के समय आप ओय अम्माँ! कहकर कराहते रहते हैं। उसीने मुझे यहाँ भेजा
है।"
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