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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रोष न रसना खोलिये बरु खोलिय तरवारि । सुनत मधुर परिनाम हित बोलिय वचन विचारि ॥ तलवार भले ही निकाल लो (क्योंकि उसके प्रहार का उपचार सम्भव है ।) परन्तु क्रोध को जीभ से प्रकट मत करो। सोच-समझकर ऐसी वाणी बोलो, जो सुनने में मधुर हो और उसका परिणाम हितकर हो । एक अन्य सन्त कविने कहा है : ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय । औरन को सीतल करे आपहु सीतल होय ।। आपा का अर्थ है- अहंकार । उसीसे वाणी कठोर होती है; इसलिए अहंकार को दूर करके नम्रतापूर्वक ऐसी वाणी बोलने की सलाह दी गई है, जो दूसरोंको भी शान्त करे और अपनेको भी। योगः कर्मसु कौशलम् || ( कुशलतापूर्वक अपने कर्त्तव्यका पालन करना ही योग है ।) ऐसी वाणी बोलने के लिए कुशलता चाहिये। जीवन के प्रत्येक कार्य में कुशलता अपेक्षित है। गीता में लिखा है : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ■ मोक्ष मार्ग में बीस कदम महात्मा टालस्टाय ने जीवन को संघर्षमय बताते हुए कहा है : Life of a man is a field of battle (मानवजीवन एक युद्धक्षेत्र है ।) युद्ध के मैदान में जितना सावधान रहना पड़ता है, उतना ही सावधान जीवन में रहनेवाला सफल होता है। एक उदाहरण से यह बात स्पष्ट करना चाहता हूँ : अंग्रेजों का जमाना था। एक अंग्रेज अफसर का घोड़ा कहीं खो गया था। उसके आदेश से सिपाही उसे खोजने के लिए बाजार में घूम रहे थे। एक दूकानदार से उन्होंने पूछा : ७६ "क्या तुमने इधर से किसी घोड़े को जाते हुए देखा है ?" दूकानदारने सहानुभूतिपूर्वक यर्थाथ उत्तर दिया -- For Private And Personal Use Only --- एक घोड़ा इधर से निकला था ।" सिपाही :- " तो चलो हमारे साथ और बताओ कि घोड़ा इस बाजार में किधर मुड़ा था और कौन-सी गली में गया था ?" "जी हाँ, अभी थोड़ी देर पहले दूकानदार दूकान सूनी छोड़कर जाना नहीं चाहता था; क्योंकि वह अकेला ही दूकानपर था। उसने अपनी मजबूरी बताई; परन्तु उस जमाने में अंग्रेजों के सिपाही भी अपने को अंग्रेज अफसर से कम नहीं समझते थे । वे संख्यामें चार थे। उनके हाथों में डंडे
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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