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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ■ मोक्ष मार्ग में बीस कदम (मेघ के जल से यदि राजमार्ग रपटीला हो जाय तो विद्वान् भी कभी-कभी वह मार्ग छोड़कर चलते हैं ।) त्याग भी एक कर्त्तव्य है; परन्तु कैसी कौनसी चीज का त्याग किया जाना चाहिये ? यह जानने के लिए " चाणक्य नीति" का यह श्लोक देखिये :त्यजे दयाहीनम् विद्याहीनं गुरुं त्यजेत् । त्यजेत्क्रोधमुखी भार्याम् निःस्नेहान् बान्धवांस्त्यजेत् ॥ (दयारहित धर्म का, विद्यारहित गुरु का, क्रोधमुखी पत्नी का और प्रेमरहित बन्धुओं का त्याग कर देना चाहिये ।) धर्म का पालन कर्त्तव्य है; परन्तु जिस धर्म में क्रूरता के विधान हों- यज्ञों में पशुबलि की अनिवार्यता हो अथवा देवी के मन्दिर में बकरे या भैंस का बलिदान करना पड़ता हो, ऐसे धर्म का त्याग करना ही कर्त्तव्य होगा । गुरूदेव की सेवा करना कर्त्तव्य है; परन्तु जो गुरु विद्वान न हो- हमारे प्रश्नों का उत्तर न दे सकता हो - जिज्ञासाओं का समाधान करने में सर्वथा असमर्थ हो, उस गुरु का त्याग ही कर्त्तव्य हो जायगा । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्नी का पालन करना कर्त्तव्य है; किन्तु जो पत्नी चिड़चिड़ी हो दिनभर मुँह फुलाये बैठी रहती हो जरा-जरासी बातपर झगड़ने बैठ जाती हो; उसका त्याग कर देना कर्त्तव्य हो जायगा । इसी प्रकार जिन कुटुम्बियों में हमारे प्रति स्नेह न हो, उनका भी त्याग करने की सलाह दी गई है। आव नहीं आदर नहीं नहीं नयन में नेह । 'तुलसी' तहाँ न जाइये, कंचन बरसे मेह ।। "नीतिवाक्यामृत" नामक ग्रन्थ में निर्दिष्ट कुछ कर्त्तव्य इस प्रकार हैं : * त्रीण्यवश्यं भर्त्तव्यानि माता * कलत्रमप्राप्तव्यवहाराणि चापत्यानि ।। (माता, पत्नी और जब तक कमाने-खाने योग्य न हो जाय, तब तक सन्तान इन तीनों का भरणपोषण अवश्य करना चाहिये ।) * ७४ आयानुरूप व्ययः कार्यः । ( आमदनी के अनुसार ही खर्च करना चाहिये ।) हिन्दी में भी एक कहावत प्रसिद्ध है : "ते ते पाँव पसारिये जेती लम्बी सौर ।।" For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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