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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०. कर्त्तव्य कर्तव्य प्रेमियो! जितने भी सद्गुण माने जाते हैं, उन सबका लक्ष्य है- कर्त्तव्यपालन । महात्मा गाँधी का कथन है : ___ "कर्त्तव्य में मधुरता है।" इस मधुरता का जो अनुभव करता है, वह सदा कर्त्तव्य परायण बना रहता है। कर्त्तव्य और प्रेम में संघर्ष होने पर वह कर्त्तव्य को ही चुनता है। कर्त्तव्य के लिए वह प्रेम का बलिदान कर देता है । वह फल की चिन्ता नहीं करता; क्योंकि उसे कर्त्तव्य में ही आनन्द की अनुभूति होने लगती है। यदि हम प्रकृति की ओर दृष्टिपात करें तो पता चलेगा कि वहाँ सभी अपने-अपने कर्त्तव्य का पालन कर रहे हैं । पृथ्वी सब प्राणियों को धारण कर रही है- जल सबकी प्यास बुझा रहा है- आग भोजन पका रही है- हवा सबको श्वासोच्छ्वास द्वारा जीवित रख रही है- वृक्ष फल और छाया दे रहे हैं- चन्द्र रात को जगमगाकर अंधेरे को भगा रहा है और सूर्य सर्वत्र प्रकाश फैलाकर सभी प्राणियों को जगा रहा है; तो फिर मनुष्य ही क्यों हाथ पर हाथ धर कर बैठा रहे ? उसे भी अपने कर्त्तव्य का पालन करना चाहिये। यदि हम ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करते हैं तो निश्चय ही हमारा भविष्य उज्ज्वल होगा। ___ 'कृ' धातु में कृदन्त का “तव्य' प्रत्यय जुड़ने पर कर्त्तव्य बनता है, जिसका अर्थ हैकरने योग्य कार्य अर्थात् जो कुछ हमें करना चाहिये, वह कर्त्तव्य है। हमें क्या करना चाहिये? इस प्रश्न का एक उत्तर नहीं हो सकता; क्यों कि यह प्रश्न जिस परिस्थिति में पूछा जा रहा है, उसी के आधार पर कर्त्तव्य निर्धारित होगा। परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती है; इसलिए कर्त्तव्य भी भिन्न-भिन्न होंगे। उदाहरणार्थ : गन्तव्यम् राजपथे। [राजमार्ग (सड़क) पर चलना चाहिये।] परन्तु श्री हर्षकवि के अनुसार इसका अपवाद भी है : घनाम्बुना राजपथे हि पिच्छिले। क्वचिद्रुधैरप्यपथेन गम्यते॥ -नैषधीयचरितम् ७३ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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