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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मोक्ष मार्ग में बीस कदमपटमं नाणं तओ दया॥ (पहले ज्ञान और फिर दया।) दया का मतलब है -आचरण । ज्ञान के अनुसार आचरण न होनेपर कैसी दुर्दशा होती है, सो एक उदाहरण से भलीभाँति समझमें आ जायगी : किसी गाँव मे एक सुन्दर भवन था । रातको उसके एक कमरे मे पतिपत्नी सो रहे थे। आधी रातके बाद एक चोर खिड़की तोड़कर कमरे में घुस आया। खटखटाहट से पत्नी की नींद खुल गई। पतिदेव को जगाकर उसने धीरे-धीरे कहा :- "अजी! जगते हो ?' पति :- “हाँ-हाँ, जग रहा हूँ। कोई खास बात है क्या ?' पत्नी :- “घरमें चोर घुस आया है !" पति :- "जानता हूँ।" पत्नी :- “वह तिजोरी की तरफ बढ़ रहा है।" पति :- "जानता हूँ।" पत्नी :- "उसने तिजोरी खोल ली है।" पति :- "जानता हूँ।" पत्नी :- “वह नोटोंकी गड्डियाँ निकाल रहा है।'' पति :- "जानता हूँ।" पत्नी :- "उसने सारे नोट निकालकर अपने ब्रीफकेसमें भर लिये हैं।" पति :- "जानता हूँ।" पत्नी :- “अब वह जाने के लिए खिड़की से कूद रहा है।" पति :- "जानता हूँ।" पत्नी :- "बाहर निकलकर अब तो वह बहुत दूर चला गया होगा।" पति :- “हाँ जानता हूँ।" पत्नी :- “क्या जानता हूँ-जानता हूँ कहना ही जानते हो या धन की रक्षा करना भी? अपनी आँखोके सामने धन चुराया गया और फिर भी तुमने कुछ नहीं किया !" तोड़ तिजोरी धन लियो, चोर गयो अतिदूर। जाणू-जायूँ कर रह्यो, जाणपणामें धूर ॥ बड़ौदा (जिसे गुजराती में वडोदरा कहते हैं) की बात हैं। वहाँ सर सयाजीराव की अध्यक्षता में एक सभा हुई। उसमें एक मद्रासी विद्वान् का तर्कपूर्ण अत्यन्त रोचक भाषण हो रहा था। प्रतिपाद्य विषय था- “अहिंसा और उसका जीवन में महत्त्व !" बोलने की शैली इतनी आकर्षक थी कि सभी श्रोता मन्त्रमुग्ध से होकर सुनते रहे। तभी अकस्मात् वक्ता के चेहरे पर पसीनेकी बूंदें आ गई। उन्हें पोंछने के लिए विद्वान् ने अपनी ५४ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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