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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ● आचरण • जेब में हाथ डालकर रूमाल बाहर निकाला; किन्तु जल्दी में ध्यान न रहनेसे दो अण्डे भी जेब से रूमाल के साथ बाहर निकल कर फर्श पर गिर पड़े और फूट गये ! श्रोताओं को यह दृश्य देखकर अत्यन्त खेद और आश्चर्य हुआ कि अहिंसा धर्म पर धुआँधार भाषण झाड़नेवाला आदमी स्वयं अंडे किस प्रकार खाता होगा ? वक्ता महोदय लज्जित होकर एक ओर बैठ गये । अध्यक्षपद से बोलते हुए सर सयाजीरावने कहा :- “ऐसे ही लोगों ने देश का सर्वनाश किया है, जिनकी कथनी और करनी में एकता नहीं पाई जाती!" कहते सो करते नहीं, मुँह के बड़े लबार । काला मुँह हो जायगा साई के दरबार ।। एक कथावाचक ने अपने प्रचन में बैंगन खाने की बुराई बताई प्रवचन समाप्त हुआ । श्रोता अपने-अपने घर पहुँचे। वे भी अपने घर जा रहे थे । कि मार्ग में सब्जीमंडी आई । गोल-गोल छोटे छोटे ताजा नीले सुन्दर बैंगनों के ढेर पर उनकी नजर पड़ी। दक्षिणा में मिले पैसों से उन्हें सब्जी खरीदने की इच्छा हुई तो बैंगन ही तुलवाने लगे। एक श्रोता भी वहाँ सब्जी खरीदने आया था। उसने पंडितजीको रंगे हाथों पकड़ लिया था । श्रोताने कहा :“अरे! आप यह क्या कर रहे हैं? अभी कुछ समय पहले ही तो प्रवचनमें आपने बैंगन छोड़ने की सबको प्रेरणा दी थी और आप खुद बैंगन खरीदकर घर ले जा रहे हैं! ऐसा क्यों ?" पंडितजी बोले :- “भाई! असल में बात यह है कि जिनकी बुराई मैं कर रहा था, वे तो पोथी के बैंगन थैं, परन्तु ये बैंगन तो खाने के हैं। दोनों एक कैसे हो सकते हैं ? फिर पोथी में तो बात लिखी होती है, जो कुछ पोथी में लिखा होता है, उसे सुनाना हमारा कर्तव्य है । कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करने पर ही हम दक्षिणा पाने का अधिकारी बनते हैं । प्रवचन के समय मैंने यही तो कहा था कि सबको बैंगन का त्याग करना चाहिये। मैं बैंगन नहीं खाता अथवा मैं बैंगन नहीं खाऊँगा - ऐसा तो मैंने कहा नही था ! " उवएसा दिज्जन्ति हत्थे नच्चाविऊण अन्नेसिं । जं अप्पणा न कीरइ किमेस विक्काणुओ धम्मो ? [ हाथ नचा - नचाकर दूसरों को उपदेश दिये जाते है; किन्तु उपदेशक स्वयं यदि उन उपदेशों का पालन नहीं करता तो क्या धर्म केवल बेचने की वस्तु नहीं बन जाती ? (वह उपदेश देता है और बदले में दक्षिणा लेता है जैसे बाजार में हम रूपये लेकर कोई वस्तु बेचते हैं, वैसा ही वह करता है । इस प्रकार धर्मोपदेशक को वह बिक्री की वस्तु बनाता है, जो सर्वथा अनुचित है ।) ] For Private And Personal Use Only ५५
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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