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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir •आचरण. उपदेश देना सरल है -आचरण बहुत कठिन है। दूसरों का कुटुम्बी मर जाय तो हम सान्त्वना और धीरज देने का काम आसानी से कर सकते हैं। परन्तु अपने ही घरमें कोई मर जाय तब आँसुओंको नहीं रोक पाते - मनको नहीं समझा पाते – धीरज नहीं रख पाते। यह स्थिति केवल श्रावक-श्राविकाओं के घरों में ही नहीं होती, साधुओं तक मे पाई जाती है; क्योंकि हम लोग भी साधक ही हैं, सिद्ध नहीं। चौदह हजार साधुओंके नायक प्रभु महावीर के प्रथम गणधर गौतम-स्वामी की महावीर-निर्वाण के बाद क्या स्थिति हुई थी? सो आप सब लोग जानते ही है। एक साधारण गृहस्थ की तरह वे चिल्ला-चिल्लाकर रोने लग गये थे। दस-पन्द्रह मिनिट तक नहीं, रातभर आँसू बहाते रहे-विलाप करते रहे; परन्तु चौथे प्रहर में उनकी विचार धाराने पलटी खाई। सोचने लगे- “महावीर का शरीर नश्वर था। वह तो छूटने ही वाला था; परन्तु उनका उपदेश तो मौजूद है और वही प्राणियों के लिए कल्याणकारी है। व्यर्थ ही मोहवश मैं रोया! रोनेसे लाभ क्या हुआ ? महावीरके उपदेश को धारण करता रहा; परन्तु आचरण से दूर हो गया! धिक्कार है मुझे। मैं महावीर प्रभुका प्रथम शिष्य था; परन्तु उनके शरीर के वियोग में विलाप ने प्रमाणित कर दिया कि मैं अयोग्य शिष्य था। नहींनहीं. . . अब मैं अपने को सुयोग्य शिष्य के रूपमें प्रमाणित करूँगा...." ___ ऐसे चिन्तनसे ही उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो पाया। महावीर प्रभु के शरीर के प्रति उनका जो अनुराग था, वही केवलज्ञान की प्राप्ति में बाधक बन गया था, सो बाधा हटते ही वे सर्वज्ञ सर्वदर्शी बन गये। पर उपदेश कुशल बहुतेरे। जो आचर हिं ते नर न घनेरे।। -रामचरितमानस (दूसरों को उपदेश देनेवाले तो बहुतसे हैं; परन्तु जो आचरण करते हैं- ऐसे व्यक्ति बहुत कम पाये जाते हैं।) स्वामी विवेकानन्द अमेरिका गये। वहाँ उनकी सादी पोशाक देखकर हँसनेवाले एक सज्जन को उन्होंने कहा :- "आपके देशमें सभ्यता का निर्माता दर्जी है, परन्तु मैं जिस देश का निवासी हूँ, उसमें सभ्यता का निर्माता चरित्र (आचरण) हैं!''. मूल्यवान् पोशाक से यही मालूम होता है कि आप धनवान् हैं। सभ्यता का पोशाक से क्या सम्बन्ध ? चोर, डाकू. जेबकतरे, व्यभिचारी और अत्याचारी भी अच्छी से अच्छी पोशाक पहिनकर घूमते हुए दिखाई दे जाएँगे; किन्तु इसीसे वे सभ्य अथवा सज्जन नहीं माने जा सकते। आचरण का महत्त्व बताते हुए शास्त्रकार कहते हैं : ५३ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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