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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandiri - मोक्ष मार्ग में बीस कदम । अपना लक्ष्य पा नहीं सकते। लक्ष्य पाने के लिए तो आपको स्वयंही चलना पड़ेगा : अरिहन्तो असमत्थो तारिउं लोआण भवसमुद्दम्मि । मग्गे देसण कुसलो तरन्ति जे मग्गि लग्गन्ति ॥ [लोगों को भवसागर से तारने में अरिहन्तदेव असमर्थ हैं। वे केवल मार्गदर्शन करने में कुशल हैं। भवसागर से पार तो वे ही पहुँचेगे जो मार्ग पर लग जायेंगे-चलना (तैरना) अर्थात् आचरण प्रारंभ कर देगे।] ज्ञान का जो आचरण नहीं करते, वे पढे-लिखे मूर्ख कहलाते हैं : शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खाः यस्तु क्रियावान् पुरुषःस विद्वान् ।। [शास्त्रों का अध्ययन करके भी कई बार कई लोग मूर्ख ही रहते हैं। जो आचरणशील पुरुष हैं, वही सच्चा विद्वान है।] भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन ने कहा था कि भारत को शिक्षा की नहीं, चारित्र की आवश्यकता है। इंग्लिश कविता की दो पंक्तियाँ बहुत सुन्दर है : A man of words and not of deeds Is like a garden full of weeds [जो मनुष्य बोलता है; परन्तु आचरण नहीं करता, वह उस बगीचे के समान है, जिसमें केवल घास ही घास है।] आचरण पर जोर देने का तात्पर्य यह नहीं कि ज्ञान, धारणा या शास्त्र महत्त्वहीन हैं। महत्त्व उनका भी कम नहीं है; क्योंकि वे सब आचरण के लिए प्रेरक हैं; परन्तु तरतमता की दृष्टि से विचार करें तो शास्त्र, धारणा और ज्ञान का महत्त्व क्रमशः अधिक से अधिक है और आचरण का सबसे अधिक! कहा भी है : अजेभ्यो ग्रन्थिनः श्रेष्याः ग्रन्थिभ्यो धारिणो वराः । धारिभ्यो जानिनः श्रेष्टाः ज्ञानिभ्यो व्यवसायिनः ।। -मनुस्मृतिः [अज्ञानियों से शास्त्रों का अध्ययन करनेवाले श्रेष्ठ हैं। शास्त्रों का अध्ययन करनेवालों से वे श्रेष्ठ हैं, जो शास्त्रों को कण्ठस्थ कर लेते है। शास्त्रों को कंण्ठस्थ करनेवालों से वे श्रेष्ठ हैं, जो मनन-चिन्तन करके उस शास्त्रीय ज्ञान को आत्मसात् कर लेते हैं- पचा लेते हैं और स्वयं ज्ञानी बन जाते हैं। ऐसे श्रुतज्ञानियों की अपेक्षा वे लोग श्रेष्ठ हैं, जो ज्ञान के अनुसार व्यवसाय (व्यवहार या आचरण) करते हैं।] For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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