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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .आचरण. पड़ेगी!! परोपकार में धनदौलत को त्याग करमाधौगार,!!47 तानपूर में चार तार होते हैं। उनसे क्रमशः “प-सा-सा-सा'की ध्वनि निकलती रहे तभी शुद्ध संगीत का गायक को आधार मिलता है; उसी प्रकार जीवन में भी दर्शन, ज्ञान, चारित्र्य और तप का सन्तुलन बना रहे तभी जीवको शुद्ध धर्म का आधार मिलता है। सारंगी में विभिन्न तारों का मेल हो तभी उससे उत्पन्न संगीत कानों को प्रिय लगता है, उसी प्रकार जीवन में सदाचार का मेल हो तभी उससे उत्पन्न सद्व्यवहार लोगों को प्रिय लगता है। यही कारण है, जिससे सदाचारी शीघ्र लोकप्रियता अर्जित कर लेना है। लोग समाजसुधारकी बात करते हैं; लेकिन व्यक्तियोंसे ही समाज बनता है; इसलिए यदि व्यक्ति अपने को सुधार ले तो समाज-सुधार अपने आप हो जायगा। बड़ोके आचरण का प्रभाव छोटों पर पड़ता है। घर में होनेवाले हर बुरे भले व्यवहार को बच्चे तत्काल अपना लेते हैं। किसी घर के बच्चों का आचरण देखकर आसानी से यह पता लगाया जा सकता है कि उस घर में रहनेवाले कुटुम्बी कैसे हैं; क्योंकि ब्लाटिंग पेपर की भाँति बच्चे बड़ों के प्रत्येक भले बुरे आचरण का अनुसरण करते हैं। ___ आप क्या जानते हैं अथवा क्या मानते हैं- उसका उतना मूल्य नहीं है, जितना आप क्या करते हैं- इस बातका मूल्य है। मतलब यह कि ज्ञान और विश्वास की उपेक्षा आचरण ही अधिक मूल्यवान है। ___ यथासमय रूढिपालन के रूपमें किये जाने वाले प्रतिक्रमण, सामायिक आदि धार्मिक क्रिया है; और उसी सामायिक और प्रतिक्रमण को घर और दुकान के प्रत्येक व्यवहारमें जीवित रखना आचरण है। सदाचारी आत्मश्लाघा से सदा दूर रहता है। उसे “अपने मुँह मियाँ मिठू' बनने की जरूरत नहीं पड़ती। इत्र का परिचय देने के लिए सौगन्द नहीं खानी पड़ती। ढोल नहीं पीटना पड़ता!!! सुगन्ध स्वयं इत्रका परिचय देने में समर्थ है, जो इत्र के अन्दर रहती है। उसी प्रकार व्यक्ति के जीवन में रहने वाला आचरण ही उसका स्वयं परिचायक है। ज्ञान मस्तिष्क में रहता हैं; किन्तु आप गुरूदेव के मस्तिष्क को वन्दन नहीं करते। वन्दन केवल चरणों में किया जाता है, जो आचरण के प्रतीक हैं; क्योंकि चलने का काम चरण ही करते हैं। हमें ज्ञानके अनुसार चलना है। एक इंग्लिश सूक्ति के अनुसार आचरणकी शुरूआत घरसे होती है। प्रत्येक मनुष्य अपने ही पाँवों से चलकर लक्ष्य तक पहुंचता है। दूसरों के पाँवो से आप ही नहीं चल सकते। दूसरों को चलते हुए देखकर आप चलने का तरीका जान सकते हैं; परन्तु पहुँच नहीं सकने .. For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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