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- मोक्ष मार्ग में बीस कदम "ज्ञानार्णव'' ग्रन्थमें इसका और भी विस्तार से वर्णन किया गया है :
सारङ्गो सिंहशावं स्पृशति सुतधिया नन्दिनी व्याघ्रपोतम् मार्जारी हंसबालं प्रणयपरिव शात् केकिकान्ता भुजङ्गम् । वैराण्याजन्मजातान्यपि गलितमदा जन्तवोन्ये त्यजन्ति
श्रित्वा साम्यैकरूढं प्रशमितकलुषम् योगिनं क्षीणमोहम् ।। (कषायों से अकलुषित समभावी निर्मोह योगीका आश्रय पाकर हिरणी सिंहशिशु का, गाय व्याघ्रशिशुका, बिल्ली हंस-शिशु का तथा मोरनी सर्पशिशुका प्रेम से इस प्रकार स्पर्श करती है, मानो कोई माता अपने शिशुका स्पर्श कर रही हो। इस तरह अन्य प्राणी भी गर्वरहित होकर जन्मजात वैर तक छोड़ देते हैं।)
यह है - अहिंसा का फल । आफ्रिका में एक जगह भाषण देने के बाद गाँधीजी अपने निवास की ओर चले जा रहे थे। एक विरोधी हाथमे तेज छुरा लेकर अपने पीछे-पीछे चलता रहा। महात्मा गाँधी ने रक्षक समझ कर उससे कहा :- "भाई! मेरी रक्षाके लिए आप छुरा लेकर क्यों चल रहे है ? स्वयं अहिंसा भगवती ही मेरी रक्षा करना चाहेगी तो करेगी। आपको इसके लिए कष्ट उठाने की जरूरत नहीं है।''
छुरे वाले आदमीने चरणों में गिर कर कहा :- "मैं दूसरे लोगों के कहने से छग लेकर आपकी हत्या करने आया था; परन्तु मेरा हाथ ही आप पर नहीं उठा। क्षमा करें।"
यह है - अहिंसा की साधना का चमत्कार। सच पूछा जाय तो सत्य, शील, व्रत आदि सब अहिंसा से ही प्रकट होते हैं :सत्यशीलव्रतादीनामहिंसा जननी मता।।
-शुभचन्द्राचार्य (सत्य, शील, व्रत आदि की माता मानी गई है -अहिंसा।)
जितने भी यम, नियम, व्रत, आराधना, उपासना आदि के विधान धर्मशास्त्रों में मिलते हैं; उन सबके मूल में अहिंसा है- प्राणतिपात से विरमण है :
एक्कंचिय एत्थ वयं निद्दिट जिणवरेहिं सब्बेहि। पाणाइवाय विरमण मवसेसा तस्स रक्खट्ठा।।
-जैनसिद्धान्तबोलसंग्रह [सब जिनेश्वरों ने यहाँ एक मात्र प्राणातिपात विरमण व्रत (अहिंसा)का ही निर्देश किया है। शेष समस्त व्रत उसी की रक्षा के लिए बताये गये हैं।]
प्रत्येक जीव स्वतन्त्र होना चाहता है- बन्धन से छूटना चाहता है- मुक्त होना चाहता है। अहिंसा उसकी इस इच्छा की पूर्ति का अचूक साधन है। जो अहिंसक है, उसका मोक्षमें रिजर्वेशन हो जाता है :
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