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• अक्रोध •
किसी निमित्त के भी क्रोध आता रहता है। इससे विपरीत सन्त एक नाथ के उदाहरण से हमने जाना कि कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिन्हें हजार निमित्त मिल जायँ तो भी वे गुस्सा नहीं करतेपरम शान्त बने रहते हैं; परन्तु ऐसे साधक सन्त करोड़ो में दो-चार मिलते हैं :
नाकारणरूषां संख्या संख्याताः कारणक्रुधः ।
कारणेपि न क्रुध्यन्ति ये ते जगति पञ्चषाः ।।
[ अकारण क्रोधी असंख्य हैं (उनकी गणना नहीं की जा सकती ) कारण से क्रोध करने वाले संख्यात हैं (उनकी गिनती हो सकती है ।); परन्तु कारण उपस्थित होने पर भी जिन्हें क्रोध नहीं आता - ऐसे पुरुष संसार में पाँच या छह हैं ।]
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