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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ■ मोक्ष मार्ग में बीस कदम वह समझी कि माँ पैसे बचाने के लिए बहाना बना रही है; अतः वह बार-बार कहने लगी और जिद करने लगी। माँ को गुस्सा आ गया। उसने उठाकर एक थप्पड़ जमा दी। लड़की सड़क पर गिर पड़ी और उधर से आती हुई कार से कुचल जाने के कारण सदा के लिए लँगड़ीं हो गई ! Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुलिस का इशारा पाते ही आप कार रोक देते हैं; परन्तु प्रभु महावीर का उपदेश:"नो कुज्झे ॥" ( गुस्सा मत करो ।) - सूत्रकृतांगसूत्र सुनकर भी आप गुस्सा नहीं रोक सकते ! क्या आप प्रभु से पुलिस के आदमी को अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं ? सोचिये । विवेकी क्रोधपर किसी तरह काबू पाते हैं ? इसका एक उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ । अमेरिका की बात है । वहाँ एक प्रोफेसर रहते थे । उनका स्वभाव बहुत चिड़चिड़ा था । बात-बात पर उन्हें गुस्सा आ जाता था । अपनी इस आदत से वे बहुत परेशान थे । क्रोध के विरोध में वे भाषण दे सकते थे; परन्तु स्वयं अपने क्रोध से पिण्ड नहीं छुड़ा पा रहे थे। एक मित्र से उन्होंने अपनी इस परेशानीका जिक्र किया और कहा कि क्रोधसे बचनेका कोई उपाय बतायें। मित्र ने सुझाया कि सौ कोरे लिफाफों का एक पैकेट खरीदकर अपने नौकर को दे दीजिये । उसे कह दीजिये कि जब भी मुझे गुस्सा आ रहा हो, तभी इनमें से एक लिफाफा लाकर मेरे सामने रख देना। बस, इससे आपकी आदत छूट जायगी । ४० प्रोफेसरने ऐसा ही किया। क्रोध आते ही कोरा लिफाफा सामने आ जाता और उनकी विचार धारा मुड़ जाती । वे क्रोध पर ही विचार करने लग जाते । मैं क्रोधी हूँ-क्रोध कर रहा हूँ-क्रोध एक दुर्गुण है- मैं शिक्षक हूँ- दूसरोंको क्रोध से बचने की शिक्षा देता हूँ; इसलिए मुझे स्वयं भी इस दुर्गुण से दूर रहना है. ऐसा विचार चलते रहने पर धीरे-धीरे क्रोध हट जाता। वे शान्त स्थिर और पूर्ववत् प्रसन्नचित बन जाते । पहले दिन में दस बार गुस्सा आता था; परन्तु अब उस संख्यामें कमी होने लगी । दिनभर में एक बार ही गुस्सा आने लगा और फिर वह भी समाप्त हो गया । पचास-साठ लिफाफों में ही उनकी आदत सुधर गई और वे परम शान्तस्वभावी बन गये । क्या लिफापों में कोई जादू था ? नहीं । केवल विचारों को जगाने की वह एक प्रक्रिया थी । यह सारा चमत्कार विचारोंका था । जो विचार करता है, वह विकार का शिकार नहीं बन सकता। क्रोध किसी निमित्त से तो आता ही है; परन्तु जो क्रोधी स्वभाव के होते हैं, उन्हें बिना For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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