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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org • अक्रोध • सन्त एकनाथ काशीयात्रा के समय गंगास्नान करके घाट की सीढियाँ चढ़ रहे थे कि ऊपर से एक युवक ने उन पर थूक दिया। सन्त फिर सीढ़ियाँ उत्तर कर दुबारा नहायें। नहा कर ज्यों ही ऊपर चढ़ने लगे, युवक ने फिर से यूँका। सन्तने बिना यह देखे कि कौन थँक रहा है, चुपचाप सीढियाँ उत्तर कर तीसरी बार स्नान किया । इसी क्रम से उन्हें कुल पचास बार नहाना पड़ा; परन्तु भूँकने वाले के प्रति मनमें जरा भी क्रोध पैदा नहीं हुआ । आखिर युवक थक गया। उसकी आँखोंमें पश्चात्ताप के आँसू निकल पड़े कि मैंने व्यर्थ ही एक सन्तको सताया । वह सन्त के चरणों में गिर पड़ा और बार-बार क्षमा मांगने लगा । सन्त ने युवक को प्रेम से उठाया अपनी छाती से लगाया और कहा :- “भाई ! क्षमा कैसी ? तुमने तो मुझपर महान उपकार किया है। तुम्हारी कृपासे ही तो आज मुझे पचास बार पवित्र गंगा मैया की गोद में बैठने का अवसर मिला । तुम धन्यवाद के पात्र हो ।" युवक सन्त एकनाथ का सदाके लिए भक्त बन गया । सहिष्णुता ही मनुष्यको महान बनाती है । "दहीबड़ा " तो देखा ही होगा आपने। एक कविने भी उसे देखा और उसके बड़प्पन का रहस्य पूछा कि आपके नामके साथ "बड़ा" जुड़ा है, सो बताइये कि आप बड़े कैसे बने ? इस पर बड़ेने जो उत्तर दिया, उसे समझकर कविने अपने शब्दों में इस प्रकार अभिव्यक्त किया : पहले हम मर्द मर्द से नार कहाये करके गंगास्नान मैल सब दूर कराये कर पत्थर से युद्ध तेल में गये डुबाये निकल गये जब पार तभी हम बड़े कहाये Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उड़द या मूँग पुँल्लिंग है। उसकी दाल स्त्रीलिंग है; इसलिए वह कहता है कि मैं पुरुष से स्त्री बना। दाल पानीमें गलाई जाती है । फिर पत्थर पर पीसी जाती है; इसलिए वह कहता है कि गंगास्नान करके पत्थर से युद्ध किया । फिर गर्म तेलमें उसे तला जाता है। इतनी सारी तपस्याएँ करने के बाद उसे "बड़ा" कहलाने का सौभाग्य मिलता है। इससे विपरीत जिसमें सहिष्णुता नहीं होती, उसे बात-बात पर गुस्सा आ जाता है । गुस्से से कभी-कभी इतनी अधिक हानि हो जाती है कि उसकी पूर्ति जीवन भर नहीं हो पाती । छह वर्ष की एक पुत्री के साथ माँ किसी बाजार से गुजर रही थी । रास्तेमें एक गुब्बारे वाल खड़ा था । पुत्री गुब्बारा दिलाने के लिए माँ से कहने लगी । गुब्बारा दस पैसे में मिलता था। माँ के पास दस रुपयेका बँधा नोट था। गुब्बारे वालेसे दस रू. के एकैक रुपए मिलने की संभावना नहीं थी। माँ के पास दस पैसेका सिक्का एक भी नहीं था । माँने कहा :- "अभी रेचकी नहीं हैं बेटी ! बादमें गुब्बारा दिला देंगे।" की मजबूरी बेटी क्या समझे ? उसे तो रंग-बिरंगे गुब्बारे आकर्षित कर रहे थे। ३९ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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