________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
- मोक्ष मार्ग में बीस कदम, भी अपवित्र बन चुका हैं; इसलिए अब तो गंगास्नानसे ही इसकी शुद्धि हो सकेगी।"
पंडितने अपनी भूल स्वीकार की और बात ही बातमें आँखें खोलने के लिए उस मेहतर का आभार माना।
उवसमेण हणे कोहम् ॥ ( क्रोध को उपशम से मारना चाहिये।)
महात्मा बुद्ध का एक क्षत्रियने अपमान किया, गालियाँ दीं; किन्तु बुद्ध एकदम शान्त रहे । क्षत्रिय थक गया। उसे आश्चर्य हुआ कि इतनी गालियों का महात्माजी पर कोई असर क्यों नहीं हुआ। कारण बहुत सोचा । समझ में न आने पर महात्माजी से ही पूछा। वे बोले"भाई ! यदि कोई चीज तुम मुझें भेंट देना चाहो और मैं उसे न लूँ तो वह चीज किसके पास रहेगी ?"
क्षत्रिय :- “मेरे ही पास रहेगी।"
महात्माजी :- "इसी प्रकार तुमने मुझे गालियाँ दी और मैंने नहीं ली तो वे भी तुम्हारे पास रहेंगी। मैं यदि गालियाँ स्वीकार करता तो मुझपर असर होता!"
इस उत्तर से प्रभावित क्षत्रिय ने प्रणाम करके महात्माजी से बिदा ली। नीतिकारोंने ठीक ही कहा है :
अतृणे पतितो वन्हिः स्वयमेवोपशाम्यति । (घासरहित स्थल पर गिरा हुआ अंगारा स्वयं ही बुझ जाता है)
कल्पना कीजिये, एक आदमी बहुत गुस्से में टेलीफोन पर किसीको गालियाँ दे रहा हो और उधर से कोई बोले Wrong number ! तो क्या होगा ? उसका सारा गुस्सा एक दम शून्य डिग्री पर आ जायगा? सुनने वाला यदि न हो तो गालियाँ सुनाने वाला किसे और क्यों सुनाएगा?
संन्यास लेने के बाद महाराज भर्तृहरि को जब लोग गालियाँ देने लगे तो जरा भी गुस्सा न करते हुए उन्होंने उनके प्रति अपने महत्त्वपूर्ण उद्गार इन शब्दों में प्रकट किये:
ददतु ददतु गालिं गालिमन्तो भवन्तः वयमपि तदभावाद् गालिदानेसमर्थाः जगति विदितमेतद् दीयते विद्यामानम्
नहि शशक विषार्ण कोइपिकस्मै ददाति ।। (आपके पास गालियाँ हैं; इसलिए आप गालियाँ दीजिये-दीजिये । हमारे पास गालियाँ नहीं हैं; इसलिए हम गालियाँ देने में असमर्थ हैं; संसारमें यह सब लोग जानते हैं कि जो पास में होता है, वही दिया जा सकता है। खरगोश का सींग कोई किसीको नहीं दे सकता।)
For Private And Personal Use Only