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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org • अक्रोध ● हजरत मुहम्मद पैगम्बरने भी क्रोधसे बचनेका एक उपाय बताते हुए कहा है :"यदि गुस्सा आ रहा हो तो खड़े मत रहो, बैठ जाओ! और यदि तेज गुस्सा हो तो लेट जाओ!" क्रोध का सबसे बड़ा इलाज विलम्ब है। इसके लिए कहा गया है : "यदि गुस्सा आ जाय तो कुछ भी बोलने से पहले दस तक गिनो और यदि तेज गुस्सा हो तो १ से १०० तक गिनती करो।" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन अन्यत्र लग जाने पर गुस्सा शान्त हो जायगा । महात्मा ईसाने भी कहा है :- "क्रोध में विलम्ब करना विवेक है और शीघ्रता करना मूर्खता है !" है !” क्रोध करते समय न भोजन भाता है, न पचता हैं, इसलिए बिल्कुल शान्तचित्त होने पर ही भोजन करने की सलाह दी जाती है। माताओं को डाक्टर कहा करते हैं कि क्रोध में शिशुओं को स्तन पान न करायें; क्योंकि क्रोध से दूध विषैला हो जाता है- खून जहरीला हो जाता है। एक स्त्रीने पड़ौसन से झगड़ते-झगड़ते शिशुको स्तनपान कराया और थोड़ी ही देर बाद वह शिशु चल बसा। एक डाक्टर ने क्रुद्ध मनुष्यके खून का इंजेक्शन खरगोश के शरीर में लगाया और देखा कि थोड़ी ही देर बाद वह तड़प-तड़प कर मर गया। इन उदाहरणों से सिद्ध होता है कि दूध और खून में क्रोध से जहर उत्पन्न होने लगता है - हो जाता है; अतः यथाशक्ति क्रोध से दूर रहने में ही सबका कल्याण है । एक पंडित स्नान करके घर लौट रहा था । मार्ग में झाडू लगाने वाले एक मेहतर के शरीर से उसका स्पर्श हो गया। क्रुद्ध होकर पंडितने कहा :- अरे बैवकूफ ! अन्धे ! तुझे सूझता नहीं कि मैं कौन हूँ और कहाँ से आ रहा हूँ ? मैं ब्राह्मण हूँ और गंगा स्नान करके आ रहा हूँ | तूने मुझे छूकर अपवित्र कर दिया ! अब मुझे दुबारा वहाँ जाकर स्नान करना पड़ेगा ! मेहतर ने कहा :- “और मुझे भी गंगास्नान करना पड़ेगा !" पंडित : "तुझे क्यों करना पड़ेगा ?" :-' - "क्योंकि महाचाण्डाल के स्पर्श से आज मेरा शरीर बहुत अपवित्र हो गया मेहतर : पंडित :- "क्या बात कर रहे हो ? मैं तो ब्राह्मण हूँ ब्राह्मण!" मेहतर : :- " शास्त्रों में क्रोध को महाचाण्डाल कहा गया है। गुण से गुणी सदा अभिन्न होता है । आप मुझपर क्रोध करके महाचाण्डाल बन गये हैं और आपके स्पर्श से मेरा शरीर For Private And Personal Use Only ३७
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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