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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir •अभिमान . हाथ सुई की सहायता से उसे निकालने का प्रयत्न करेगा। काँटा निकलने पर सारे अंग कहेंगे कि बहुत अच्छा हुआ-पाँव की खुशी हमारी ही खुशी है। ___ अहंकार एक दुर्गुण है; फिर भी कभी-कभी वह ज्ञान का कारण बन जाता है। जैसा कि कहा गया है : अहंकारोऽपि बोधाय ॥ आचार्य हरिभद्र सूरि की जीवनी इस बात को प्रमाणित करती है। चित्तौड़ गढ़ में हरिभद्र नामक एक गजपुरोहित था। वह चौदह विद्याओं में निपुण समस्त शास्त्रोंका विशेषज्ञ विद्वान था। उसने अहंकार का शिकार होकर यह प्रतिज्ञा कर डाली कि यदि मैं किसी के द्वारा कही गई कोई बात नहीं समझ पाया तो उसका शिष्य बन जाऊँगा। एक दिन नगर में भ्रमण करते हुए उसने याकिनी नामक साध्वी के मुँह से यह गाथा सुनी : चक्किदुगं हरिपणगं पणगं चक्कीण केसी चक्की। केसव चक्की केसव, दुचक्की अ केसवो चक्की । [दो चक्री (चक्रवर्ती), पाँच हरि (वासुदेव), पाँच चक्री, एक केशव (वासुदेव), एक चक्री, एक केशव, एक चक्री, एक केशव, दो चक्री, एक केशव और एक चक्री- इस प्रकार वर्तमान चौवीसी में क्रमशः उत्पन्न होने वाले कुल बारह चक्रवर्ती और नौ वासुदेव हो चुके हैं] साध्वी याकिनी कंठस्थ गाथाओं की पुनरावृत्ति कर रही थी। हरिभद्र को इस गाथा का कुछ भी अर्थ समझ में नहीं आ सका। हरि और केशव तो फिर भी ठीक हैं, पर यह 'चक्की" क्या है ? यो भी एक ही पद्य में छह बार ? चकित होकर हरिभद्र ने निकट जाते ही व्यंग्य किया :-- "चक्रवाकीव किं चकचकायते मातः ?" हे माता! चकवी के समान आप चकचक क्यों कर रही हैं ? याकिनी साध्वीने उत्तर दिया : "नूतन एव चकचकायतेहन्तु प्रत्ला !" [जो नया होता है, वही चकचक करता है (चमकता है) मैं तो पुरानी (वृद्धा) हूँ।] ___ हरिभद्र ने इस उत्तर से ही अपने को पराजित महसूस करते हुए प्रणाम करके गाथा का अर्थ पूछा। याकिनी महत्तरा ने कहा- “आप इसका अर्थ मेरे गुरुदेव से समझ लेंगे तो अधिक अच्छा रहेगा।'' "कहाँ हैं गुरुदेव ? मुझे जल्दी से उनके पास ले चलिये।'' For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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