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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .अभिमान. Pride goes before it falls ऐसा कहा गया है। घमण्डी का अन्त में पतन होता है। विवेक ही वास्तविक आँख है, जिससे हमें स्वपरभावोंका बोध होता है; परन्तु अभिमान से वह आँख बन्द हो जाती है : लुप्यते मानतः पुंसाम् विवेकामललोचनम् (अभिमान से मनुष्यों की विवेकरूपी निर्मल आँख बन्द हो जाती है!) स्थायी तत्त्व पर अभिमान हो तो बात दूसरी है; परन्तु लोगजन (परिवार, मित्र आदि), धन और यौवन का अभिमान करते हैं, जो अस्थायी है – नश्वर हैं। शंकराचार्य कहते हैं : मा कुरु धन जन यौवन गर्वम्। हरति निभेषात्कालः सर्वम्॥ मायामयमिदमखिलं हित्वा। ब्रह्मपदं त्वं प्रविश विदित्वा॥ [धन, जन और यौवन का गर्व मत कर। पलभर में काल इन सबका अपहरण कर लेगा। इस सम्पूर्ण माया (अज्ञान) से युक्त संसार का त्याग करके मोक्ष के स्वरूप को समझने के बाद उस में प्रवेश कर] युद्ध का हृदय के भीतर छिपे अहंकार से जन्म होता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रणेता हिटलर की मृत्यु किस प्रकार हुई, वह सुनकर आपको भी उस पर दया आएगी। अत्यन्त करूणाजनक अन्त हुआ उसका। अपने ही हाथों से गोली मार लेनी पड़ी उसे! अन्तिम साँस छोड़ने से पहले अपने विश्वास पात्र नौकर से कहा :- “प्राण छूटने के बाद मेरी लाश को पेट्रोल डाल कर तत्काल भस्म कर देना!'' दुनिया को जीतने वाला अभिमानी इतनी बुरी हालत में अपने ही हाथों मरा! ___ अभिमान जीवन का फुल स्टॉप (पूर्ण विराम) है। उस से प्रगति रूक जाती है। प्रगति रोक कर-जीवन को हानि पहुँचा कर अभिमान भी चला जाता है। लक्कड़ की अक्कड़ कब तक टिकेगी? जब तक आँधी का आक्रमण न हो जाय, तभी तक! अहम् (मैं) का अर्थ बताने के लिए इंग्लिश में आई (I) शब्द है । यह वाक्य में किसी भी स्थान पर रहे, केपीटल ही लिखा जाता है। उसी प्रकार अहंकारी व्यक्ति कहीं भी चला जाये - कहीं भी रहे, उसका मस्तक ऊँचा रहता है। वह सोचता है- “मैं चौड़ा हूँ, बाजार सँकड़ा है- मैं ऊँचा हूँ, दुनिया नीची है- मैं लम्बा हूँ, बाकी सब लोग ठिगने है।" एक दिन की बात है। शरीर के सारे अंग अहंकार से फूल कर अपने को सबसे बड़ा बताने लगे : २९ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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