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•अनेकान्त. अन्तमें सन्मति तर्क प्रकरण की एक गाथा उद्धृत करके मैं अपना वक्तव्य समाप्त करता
Phot
जेण विणा लोगस्स वि ववहारो सव्वहा न निव्वडइ ।
तस्स भुवणेक्कगुरुणो णमो अणेन्तवायस्स ।। (जिसके बिना संसार का व्यवहार भी बिल्कुल चल नहीं सकता, उस त्रिभुवन के एक मात्र गुरु अनेकान्तवाद को नमस्कार हो।)
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