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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ■ मोक्ष मार्ग में बीस कदम इस अनेकान्तवादी उत्तर से दोनों पत्नियों का समाधान हो गया। वे पूरी तरह सन्तुष्ट हो गई। बादशाह अकबर जैनाचार्य श्रीहीर विजयसूरिके प्रति बहुत श्रद्धा रखते थे । एक दिन उन्होंने प्रश्न किया :- "गुरुदेव ! आप लोग माला फिराते समय मनके अपनी ओर घुमाते हैं। और हम लोग बाहर की ओर, इन दोनोंमें से कौनसी पद्धति ठीक है और क्यो ?" जैनाचार्यो के उत्तर तो अनेकान्तवादसे सने रहते हैं । वे बोले :"महानुभाव ! माला फिराने की दोनों पद्धतियाँ ठीक हैं, अपनी ओर मनका घुमाने का मतलब है एक-एक सद्गुण को क्रमशः अपनानेका संकल्प और बाहर की तरफ मनका घुमाने का मतलब है एक-एक दुर्गुण को अपने ह्रदय से बाहर निकालने का संकल्प । दोनों ही संकल्प अच्छे हैं; किन्तु यह याद रखना जरूरी है कि माला अपने आपमें साध्य नहीं है। वह सद्गुणों की अपनाने और दुर्गुणों को दूर करने का साधन मात्र है। यदि जीवनशुद्धि का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जाय तो माला फिराने का श्रम व्यर्थ चला जायगा । महात्मा कबीरने ठीक ही कहा है - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'कबिरा' माला काठ की, कहि समुझावै तोहि । मनन फिरा वै आपणा कहा फिरावै मोहि ॥ माला फेरत जुग गया, मिटा न मन का फेर । करका मनका डारि दै मन का मनका फेर ॥ अन्तिम लक्ष्य है-मन को वश में करना - जीव को शुद्ध बनाना-दुर्गुणों से दूर रहना और सद्गुणों को आत्मसात् करना ।" इससे बादशाह को अपने प्रश्न का सन्तोषजनक उत्तर मिल गया । २२ आचार्य हीरविजयसूरि के ही एक शिष्य थे - मुनि समय - सुन्दर । उन्होंने कहा कि एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। किसी एक अर्थ से चिपटकर बैठना एकान्तवाद है। उससे संघर्ष उत्पन्न होता है। यदि हम सूक्ष्म विचार करें तो दूसरों के द्वारा किये गये अर्थ भी हमें सूझ जाय और तब कोई संघर्ष न रहे। राजदरबार में बैंठे अन्य विद्वानोंने इसका प्रतिवाद किया और मुनिजी को एक वाक्य सुनाकर चुनौती दी कि वे उसके अनेक अर्थ करके बतायें । वाक्य था : "राजानो ददते सौख्यम् ॥” मुनिजी ने अपनी प्रतिभा का पूरी शक्ति से उपयोग करते हुए इस वाक्य के दस लाख विभिन्न अर्थ करके सबको मन्त्रमुग्ध कर दिएँ । ये सारे अर्थ एक ग्रन्थ के रूपमें प्रकाशित हो चुके हैं, जिसका नाम है- "अनेकार्थरत्नमञ्जूषा ।" संस्कृत में एक कहावत है : : सर्वे सर्वार्थवाचका: । For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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