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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मोक्ष मार्ग में बीस कदम, सिर काटकर फिंकवा दिया जायगा । यदि पूरा तेल सुरक्षित रहा तो यह कटोरा तुम्हें इनाम में दे दिया जायगा।" सुनार चल पड़ा । मन्त्री की आज्ञा से मार्ग में स्थान-स्थान पर संगीत और नृत्यके विविध कार्यक्रम आयोजित किये गये; किन्तु सुनार एक बूँद छल काये बिना तेल से पूरा भरा हुआ कटोरा लेकर राजमहल में लौट आया। मन्त्रीने कटोरा पुरस्कार में देते हुए कहा :- "आपने कल भरतचक्रवर्ती के विषय में जो टिप्पणी की थी उसका उत्तर देनेकेही लिए आज आपको यह कष्ट दिया गया था। जिस प्रकार मृत्यु के भय से आपका सम्पूर्ण ध्यान तेल पर केन्द्रित रहा, उसी प्रकार भरत चक्रवर्तीका ध्यान भी कर्त्तव्यपर केन्द्रित रहता है - मरण का स्मरण सांसरिक सुखों से उन्हें अनासक्त बनाये रखता है; इसीलिए वीतराग ऋषभदेव उनकी प्रशंसा करते हैं । यह पुत्र की नहीं, किन्तु एक अनासक्त राजा की प्रशंसा है।" सुनार सन्तुष्ट होकर चला गया। उसे अनासक्त रहने का अभ्यास हो गया। दूसरा उदाहरण राजर्षि जनक का है। उन्हें अनासक्ति के कारण "विदेह'' कहा जाता है। एक दिन मन्त्रीने उनसे पूछा :- "महाराज! देहमें रहकर भी आप विदेह (देहरहित) कैसे कहलाते हैं ?" राजाने कहा- “कल आप भोजन मेरे साथ करेंगे । वहीं आपको प्रश्नका उत्तर भी दे दिया जायगा।' दूसरे दिन राजाने सारे नगर में ढिंढोग पिटवा दिया कि मन्त्री का एक ऐसा गुप्त अपराध पकड़ में आया है, जिसके दण्डस्वरूप आज भोजन के एक घंटे बाद उन्हें सूली पर चढा दिया जायगा। इधर राजाने फीकी मिटाई और बिना मसाले के व्यजन भोजन में बनवाये, यथा समय भोजन कर चुकने के बाद मन्त्री से राजाने पूछा :- "कैसा लगा भोजन आपको ?' मन्त्री :- "महाराज! भोजन आपके आदेशानुसार बना था; इसलिए अच्छा ही बना होगा- इसमें कोई सन्देह नहीं; परन्तु मुझे तो एक घंटे बाद सूली पर चढ़ना है; इसलिए मेरी जीभ स्वाद लिये बिना ही भोजन को पेटमें धकेलती रही है; अतः भोजन का स्वाद मैं बता नहीं सकता!" राजा जनक :- “आपको अब सूली पर नहीं चढाया जायगा ।सूलीका ढिंढोग तो केवल आपको प्रश्न का उत्तर समझाने के लिए पिटवाया गया था, जिससे आपको विश्वास हो जाय कि मैं निश्चित ही मार डाला जाऊँगा। मृत्यु के विश्वास के साथ ही आपकी जीभ ने स्वाद बताना बन्द कर दिया - यह आपका अपना अनुभव है । मृत्यु तो इस संसार में प्रत्येक प्राणीकी १६ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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