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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir •अनासक्ति. सकी। लौटने पर महात्मा बुद्धने उसे समझाया :- “जो प्राणी जन्म लेता है, वह अवश्य मरता है, प्रत्येक घरमें कोई न कोई मर चुका है; परन्तु संसार का व्यवहार मरने वालों से नहीं रुकता। माली फूलों को तोड़ लेता है। कल जब कलियाँ फूल बन जायेंगी, तब उन्हें भी तोड लेगा । एक दिन सबको मरना है। न तू रहेगी, न मैं रहूँगा।" बुढ़िया का पुत्रमोह नष्ट हो गया और महात्मा बुद्ध को प्रशाम करके वह चुपचाप अपने घर लौट गई। राम को और पांडवों को बनवास के कारण महल छोड़ना पड़ा था, उसी प्रकार आपको भी अपना भव्य भवन छोड़ने का कभी अवसर आ जाय तो क्या वह भवन आँसू बहायगा ? यदि पिस्तौल की नोक पर कोई आपका बटुआ छीन ले तो क्या वह दुःखी होगा ? उसमें रहे हुए सौ-सौ के नोट क्या आपके वियोग में रोएँगे ? भवन और धन की तरह पूरे विश्व की स्थिति निरपेक्ष है। कोई किसी के प्रति आसक्त हैं ? जब आपके लिए कोई दुःखानुभूति नहीं करता, तब आप ही क्यों दुःखानुभूति में गले जा रहे है ? जब साँप काटता है, तब नीमकी पत्तियाँ मीठी लगती हैं, जो वास्तव में कड़वी हैं। इसी प्रकार आसक्ति वश संसार मीटा लगता है; परन्तु वह केवल भ्रम है। संसारकी आसक्ति मिटाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण सुझाव यह है कि उसें नाटक माना जाय। रामलीला होती है। एक रावण बनता है। दूसरा हनूमान बनकर उसकी लंका जलाता है। तीसरा राम बनकर उसका वध कर देता है। दर्शक प्रसन्न होकर तालियाँ बजाते हैं। पर्दे के भीतर रावण, हनूमान और राम एक ही बेंच पर बैठकर चाय पीते हैं। रावण के हृदय में न तो राम और हनूमान के प्रतिशत्रुता रहती है और न ताली पीटने वाले दर्शकों के प्रति द्वेष! रावण सोचता है कि मैं तो केवल एक अभिनेता हूँ। मान-अपमान अथवा शत्रुता-मित्रता से मेरा क्या सम्बन्ध? संसारमें भी रागद्वेष रहित होकर एक अभिनेता की तरह अनासक्त भाव से हम सबको अपने-अपने निर्धारित कर्त्तव्यों का पालन करते रहना है। _अनासक्ति का एक अन्य साधन है – मरण का स्मरण । भरत चक्रवर्ती की अनासक्ति का यही आधार था। एक दिन समवसरण में प्रभु ऋषभदेव ने उनके अनासक्ति भाव की प्रशंसा कर दी। दूसरे दिन लोगों से एक सुनार कह रहा था :- “बाप तो बेटे की तारीफ करता ही है; इसमें कौनसी बड़ी बात हो गई ?" यह वाक्य वेष बदलकर घूमते हुए मन्त्री के कानमें पड़ गया। तीसरे दिन राजसभामें सुनार को बुलाकर मन्त्रीने तेल से भरा हुआ सोने का एक कटोरा देते हुए कहा :- “इसे अपने दोनों हाथों में उठाकर पूरे नगर का चक्कर लगा आओ। यदि एक भी बूंद छलक गई तो तुम्हाग १५ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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