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■ मोक्ष मार्ग में बीस कदम ■
इसका आशय क्या है ? आशय यही है कि यदि हम परमात्मा के सान्निध्य में ( मन्दिरमस्जिद - चर्च - गुरूद्वारे में ) जायें तो सांसरिक सुख की कामना से अपने मन को शून्य बना कर जायें ।
गीता में लिखा है :
यो यच्छ्रद्धः स एव सः॥
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जिसकी जिसमें श्रद्धा है, वह वही है
एक इंग्लिश विचारक ने लिखा था :- "तुम मुझे बतला दो कि तुम क्या चाहते हो और मैं तुम्हें बतला दूँगा कि तुम क्या हो !"
महर्षि व्यास ने गीता के माध्यम से जो बात कही है, ठीक वही बात दूसरे शब्दों में इंग्लिश विचारक ने कही है। दोनों का तात्पर्य यह है कि हम जिसे चाहते हैं - जिसके प्रति श्रद्धा रखते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। हम यदि वीतराग के प्रति श्रद्धा रखते हैं तो धीरे-धीरे वीतरागता हमारे भीतर आती जाती है-हम वीतराग बनते जाते हैं।
महर्षि उमास्वाति ने अपने अमर ग्रन्थ "तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम्" में सबसे पहला सूत्र लिखा
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ॥
सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक् चारित्र ही मोक्ष का मार्ग है
सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि- वीतराग प्रभु की आज्ञा को ठीक मानना, टीक जानना और ठीक आचरण करना ही मोक्ष की प्राप्ति का उपाय है।
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वीर बाह्य शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है; किन्तु महावीर क्रोध, मान, माया, लोभइन चारों आन्तरिक शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते है। आंतर के शत्रुओं से युद्ध करने वाले अरिहन्त है । संसारी विजेता वीर योद्धा को भौतिक लक्ष्मी प्राप्त होती है और विरक्त विजेता महावीर योद्धा को मोक्ष लक्ष्मी ।
बाह्य शत्रुओं से लड़ने में दूसरे की सहायता मिल सकती है; परन्तु अन्तस्तल के कषाय शत्रुओं से प्रत्येक आत्मा को स्वयं ही लडना पडता है ।
महामन्त्र में विनय की प्रधानता है; इसलिए नमो अरिहन्ताणं, नमो सिद्धाणं आदि पाँचो पदों में " नमः" पद पहले आता है; जब कि अन्य बाद में; जैसे श्री गणेशाय नमः; हरये नमः गोपालाय नमः; परमात्मने नमः आदि में ।
'विनय शिष्य का सबसे पहला गुण है । उसी से उसमें ज्ञान-ग्रहण की पात्रता पैदा होती
विनयाद् याति पात्रताम् ॥
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