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- मोक्ष मार्ग में बीस कदम, चाहिये साहूकार बनना चाहिये... तो मतलब वही होगा, पर आप बुग नहीं मानेगें।
एक स्वप्नफल पाठक ने राजा से कहा :- “आपने सपने में अपने मुँह से बलीयों दाँत गिरे हुए देखे। इस का फल यह होगा कि आपके सारे कुटुम्बी एक-एक करके आपके सामने ही मर जाएंगें!"
राजा यह सुनकर उदास हो गया, परन्तु उसी समय एक दूसरे ग्वप्नफल पाठक ने कहा:- “महाराज! आपके स्वप्न का फल बहुत अच्छा है। फल यह है कि आपकी आयु आपके पूरे परिवार में सब से अधिक होगी।'
दोनों के कथन की भाषा अलग-अलग थी, परन्तु कहने का भाव एक ही था।! फिर भी एक अविवेकी था और दूसरे ने बोलने में विवेक से काम लिया। उसका परिणाम यह हुआ कि राजा ने दूसरे को प्रसन्नतापूर्वक भारी पुरस्कार दे कर बिदा किया और पहले को कुछ भी नहीं दिया।
विवेकी बुद्धि का सदुपयोग करते है। किन्तु अविवेकी उसी बुद्धि से अपना भी और दूसरों का भी सर्वनाश कर डालते है, महाकवि रामधारीसिंह "दिनकर'' कहते है :
बुद्धि तृष्णा की दासी हुई मृत्यु का सेवक है विज्ञान।
चेतना अब भी नही मनुष्य विश्व का क्या होगा भगवान? जिसने अणुबम का आविष्कार किया। उसकी मृत्यु अत्यन्त करूणाजनक स्थिति में हुई। अपने आविष्कार से उसे घोर पश्चाताप हुआ वह रो-रो कर मरा। उसके अन्तिम शब्द थे:I Shall go to hell. [मैं निश्चत ही नरक में जाऊगा!] लेकिन :
“जब चिड़ियों ने चुग खेत लिया फिर पछताये का होवत है?
उठ जाग मुसाफिर! भोर भई अब रैन कहाँ जो सोवत है?" सहानुभूति का एक शब्द जहाँ दूसरों की उदासी को नष्ट करके उन्हें प्रसन्न कर देता है, वही अविवेकपूर्ण एक ही शब्द्ध दृसरों के हृदय को घायल कर देता है । जहाँ एक शब्द हजारों की गर्दन कटवा देता है. वही एक शब्द पर हजारों अपनी गर्दन झुका देते है! कहने का आशय यही है कि
बोली बोल अमोल है, बोल सके तो बोल।
पहले भीतर तौल कर फिर बाहर को खोल॥ जो कुछ बोले, मोच समझ कर बोले, विवेक पूर्वक बोले, क्योंकि
विवेगे धम्पमाहिए। [विवेक में ही धर्म होता है- ऐसा कहा गया है]
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