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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ■ मोक्ष मार्ग में बीस कदम विचार आया कि आखिर नौवें भाई को गठरी उठाने वाला था कौन? उसका पता लगाने के लिए सेंधके रास्ते फिर से घर में लौट आये । वहाँ पूछताछ करने पर पंडितजी ने कहा :“भाईयो ! नौवें साथी की रूआँसी सूरत देखकर मुझे उस पर दया आ गई, इसलिए मैंने ही उसकी गठरी उठवा दी थी।" एक चोर की दशा पर इतनी दया का व्यवहार देखकर सब चोरों का दिल बदल गया। माल तो उन्होंने लौटा ही दिया, साथ ही भविष्य में कभी चोरी न करने की प्रतिज्ञा भी ले ली। लज्जित होनेपर भी लोग चोरी छोड़ देते हैं । मोरबी शहर में घटित इस घटना से यह बात स्पष्ट होती है : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक सेठजी की दूकान पर कोई भिखारी आटा माँगने आया। घर में जाने के लिए दूकान के भीतर ही दरवाजा था । सेठजी आटा लेने भीतर गये। इधर दूकान पर कोई न रहने से भिखारी ने वहाँ किसी ग्राहक की पड़ी हुई तपेली उठाकर अपनी झोली में डाल ली। सेठजी खोबा - भर आटा लेकर दूकान पर आये। वहाँ तपेली न देखकर भाँप गये कि भिखारी ने ही तपेली चुराया है। सेठजी ने आटे का दान करने के बाद उससे कहा - " भाई ! आटे के साथ थोड़ा-सा घी भी लेते जाओ; अन्यथा बाटियाँ कैसे चुपडोगे ?" भिखारी बोला :- "सेठजी! घी लेने का मेरे पास कोई साधन (बर्तन) नहीं है । किस में लूँ ?” सेठजी ने भिखारी की झोली में छिपी तपेली बाहर निकाल कर कहा :- इस में! और उस में ले जाने के लिए घी भी दे दिया। इस व्यवहार से अत्यन्त लज्जित होकर भिखारी ने चोरी सदा के लिए छोड़ दी । बाबा भारती ने तो एक वाक्य से ही डाकू खड्गसिंह को चोरी का माल लौटाने और चोरी छोड़कर सम्माननीय जीवन बिताने के लिए विवश कर दिया था। वह कौनसा वाक्य था ? लीजिये, पूरी घटना सुना देता हूँ : : बाबा भारती के पास एक अच्छा घोड़ा था । उसकी आकर्षक चाल देखकर डाकू खड्गसिंह उसपर मुग्ध हो गया। जिसपर भी वह मुग्ध हो जाता, उसे वह अपनी ही वस्तु समझता था । मन-ही-मन उसने यह संकल्प कर लिया कि किसी भी तरह इस घोड़े पर अधिकार पाना है । वह चुपचाप अवसर की प्रतीक्षा करने लगा। ८ एक दिन सायंकाल के घुँघल में बाबा भारती अपने घोड़े पर सवार होकर लौट रहे थे कि सड़क के किनारे बैठे हुए एक लँगड़े पर उनकी नजर पड़ गई। उसकी सहायता करने के लिए उन्होंने घोडा रोक लिया। लँगड़े ने कहा - "बाबाजी ! मैं अमुक गाँव से लँगड़ाता हुआ बड़ी मुश्किल से यहाँ तक आ पाया हूँ। अब थकावट इतनी अधिक आ गई है कि एक क भी आगे नहीं चला जाता। कृपा करके आप मुझे इस घोड़े पर बिठा लीजिये और बाजार में For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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