SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir • अचौर्य. शंखमुनि के पास गये। अपनी चोरी का हाल सुनाया और दण्ड माँगा । शंख मुनि ने मुस्कराकर क्षमा कर दिया। परन्तु लिखित मुनि को इससे सन्तोष नहीं मिला। जीवन में पहली बार जिसने चोरी की हो, उसका मन क्षमा से भला कैसे शान्त हो सकता है ? फिर वे मुनि थे-धर्मोपदेशकथे; इसलिए नैतिक नियमों के पालन की अधिक जिम्मेदारी महसूस करते थे। जो उपदेशक स्वयं उपदेश का पालन नहीं करता, उसका समाज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता! उवएसा दिन्जन्ति हत्थे नचाविऊण अन्नेसिं । जं अप्पणा न कीरइ किमेस विक्काणुओ धम्मो ? (हाथ नचा-नचाकर दूसरों को उपदेश दिये जाते है; किन्तु स्वयं उन उपदेशों का पालन (उपदेशकों द्वारा) नहीं किया जाता। तो क्या यह धर्म बिक्री की चीज है ? उपदेश देकर समाज से रोटी और प्रतिष्ठा वसूल करनेवाले आचरणहीन उपदेशक धर्म को बिक्री की वस्तु मानते हैं। लिखित मुनि ऐसे नहीं थे। वे सीधे राजसभा में गये; किन्तु वहाँ भी राजा एवं अन्य लोग उन्हें पहिचानते थे कि- ये शंख मुनि के छोटे भाई है; इसलिए अपराध का दण्ड मिलने की सम्भावना नहीं थी। दण्ड पाने के लिए उन्होंने अपनी बात इस तरह कहीः- “हे राजन् । यदि कोई यात्री (पथिक) किसी की अनुमति लिये बिना किसी बगीचे में घुसकर फल तोड़ खाये तो इस अपराध का उसे क्या दण्ड दिया जायगा?" इससे कोई समझ न सका कि लिखित मुनि स्वयं अपने लिए दण्ड की याचना कर रहे हैं; अतः न्यायाधिपति ने राजा का संकेत पाकर कहा :- “मुनिराज! इस प्रकार फल चुराने वाले का हाथ काट दिया जायगा।" यह सुनते ही लिखित मुनि जल्लाद के पास पहुंचे और उसके हाथ में से तलवार लेकर सबके सामने अपना एक हाथ उससे काट कर फेंक दिया। फिर अपने अपराध का वर्णन किया और कहा कि अब मुझे अपने भाई के बगीचे के फल को चुराने के अपराध का यथोचित दण्ड मिल गया है। लोगों पर इस घटना का ऐसा प्रभाव पड़ा कि वर्षों तक प्रजाजनों के मन में भी चोरी करने का विचार नहीं उठा। इसी प्रकार चोरी से विरत करनेवाली एक घटना पं.बनारसीदासजी की है। एक रात को उनके घर में सेंध लगाकर नौ चोर घुस आये। एक ओर काली मिर्चों का ढेर पड़ा था। चोरों ने अपनी अपनी चादरें जमीनपर बिछाकर काली मिर्चियों की नौ गठरियाँ बाँध लीं, जब चलने की तैयारी हुई तो एक ने दूसरे के, दूसरेने तीसरे के सिर पर गठरी रखवा दी; परन्तु अन्तिम नौवाँ चोर अपनी गठरी के पास खड़ा रहा। उसे गठरी कौन उठवाता? अन्य आठ चोरों के मस्तक पर गरियाँ लदी हुई थी; इसलिए उनसे कोई सहायता उसे मिल नहीं सकती थी ऐसी स्थिति में स्वयं पंडितजी ने यह काम किया। चोर चल तो पड़े; किन्तु मार्ग में उन्हे For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy