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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मोक्ष मार्ग में बीस कदम, अंगीकार कर ले तो उसे ऐसी दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाती है कि पृथ्वी के भीतर छिपे हुए बहुमूल्य रत्न उसे प्रत्यक्ष दिखाई देने लग जाते है!) सत्पुरुष चोरी से अपने को उसी तरह बचाये रखते हैं जैसे नशे से क्यों कि जिस प्रकार नशे की आदत जल्दी छूटती नहीं, उसी प्रकार चोरी की आदत भी नहीं छूटती। एक महिला थी। बचपन से ही उसे चोरी करने की आदत पड़ गई थी। जहाँ भी कहीं वह मिलने-जुलने जाती, वहाँ से मौका पाकर कोई-न-कोई चीज उठा ही लाती; भले ही उस चीज की उसे आवश्यकता हो या न हो। उसका एक पुत्र था, जो अपनी माँ की इस आदत से बहुत अधिक परेशान रहता था; परन्तु माँ की आदत सुधारना उसके बस की बात नहीं थी। ___ एक बार विवाहोत्सव का निमन्त्रण पाकर बेटा अपनी माँ के साथ ननिहाल गया। रास्ते में उसने अपनी माँ को अच्छी तरह समझा दिया कि वह अपने को पूरी मर्यादा में रखें। उठाने की नीयत से किसी वस्तु को न छूए। ऐसा न हो कि बाहर से आये मेहमानों के सामने घर की इज्जत धूल में मिल जाय। माँ ने कहा- अरे, मैं कोई पागल थोड़े ही हूँ. जो घर की इज्जत का भी खयाल न रक्खू । मैं ऐसा-वैसा कोई काम नहीं करूंगी। तू बिल्कुल मेरी ओर से निश्चिन्त रहे। दोनों उत्साहपूर्वक विवाहोत्सव में सम्मिलित हुए। उत्सव की समाप्ति के बाद जब बहिन-बेटियों को बिदाई दी जा रही थी, तभी सब की आँख चुरा कर उस महिलाने दो-चार ब्लाउज पीस उठा लिये। बेटे की उस पर नजर पड़ गई। उसने तत्काल चिल्लाकर कहा :"माँ! यह क्या कर रही हो ?' माँ बोली :-" बेटे! मैं चोरी नहीं कर रही हूँ। यह तो अपनी आदत को थोड़ी-सी खुराक दे रही हूँ।" घर वाले सावधान हो गये। ब्लॉउजपीस तो उससे ले ही लिये, साथ ही माँ-बेटे को वहाँ से बिदा भी कर दिया। प्राचीन काल में चोरी की बहुत कड़ी सजा दी जाती थी। चोरी प्रायः हाथों से होती है; इसलिए चोर के हाथ काट डाले जाते थे। दो मुनि थे - शंख और लिखित। वैसे वे दोनों सहोदर (भाई) थे। शंख बड़ा भाई था और लिखित छोटा। राजा ने इन संन्यासी भाईयों को एक बगीचा दान कर दिया था । आधे बगीचे पर शंख का अधिकार था और आधे पर लिखित का। एक दिन लिखित मुनि बगीचे में टहलते हुए शंखमुनि वाले भाग में चले गये और क्षुधाप्रेरित होकर किसी फलदार वृक्ष का एक फल तोड़ कर खा गये। खाने के बाद उन्हें ध्यान में आया कि यह तो अदत्तादान (चोरी) का कार्य हो गया। अब क्या किया जाय? वे तत्काल For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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