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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir •अचौर्य. परन्तु पोल खुलने पर सदा के लिए दुकान ठप्प हो जाती है। एक बार ग्राहक को अविश्वास हो जाय तो फिर नापतौल के असली साधन रखने पर भी दूकान चल नहीं सकती :तुलामानयोरव्यवस्था व्यवहारं दूषयति ।। -नीतिवाक्यामृतम् [तोल-माप की अव्यवस्था व्यवहार (लेन-देन, व्यापार) को दूषित कर देती है - बिगाड़ देती प्रश्न व्याकरण सूत्र में चोरी के चार प्रकार इस गाथा के द्वारा बताये है : सामीजीवादत्तम् तित्थयरेणं तहेव य गुरुहिं । एवमदत्तसरूवम् परूवियं आगमधरे हिं ॥ [आगमधारी (शास्त्रज्ञ) महात्माओंने अदत्त के चार रूपों की प्ररूपणा की है --- स्वामी अदत्त, जीव अदत्त, जिन अदत्त और गुरू अदत्त] "उपदेश प्रासाद" में भी इन्हीं चार प्रकारों का उल्लेख पाया जाता है :-- तदाद्यं स्वामिनादत्तम् जीवादत्तं तथापरम् । तृतीयं तु जिनादत्तम् गुर्वदत्तं तुरीयकम् ।। इन में पहला है - स्वाम्यदत्त। यह वह वस्तु है, जिसे उसके स्वामी ने किसी को दी नहीं। किसी पेड़ के फल, फूल, टहनी, छाल. पत्ती आदि तोड़ना जीवादत्त है; क्योंकि पेड़-पौधे सचित (सजीव) है और उनके जीव ने फल, फूल आदि तोड़ने की हमें अनुमति नहीं दी है। यदि जिनेश्वर प्ररूपित नियमों के विपरीत अशुद्ध आहार कोई मुनि ग्रहण करता है तो गृहस्थ द्वारा दत्त होने पर भी वह आज्ञानुसार न होने से जिनादत्त है। यदि गृहस्थ द्वारा दत्त सर्वथा निर्दोष आहार भी गुरू की आज्ञा के बिना ग्रहण किया जाय (खा लिया जाय) तो उसे गुर्वदत्त कहा जाता है। इन चारों अदत्तों का आदान धर्मविरूद्ध है, चोरी है । चोरी आर्योका नहीं, अनार्यो का कर्म है । इससे अपयश फैलता है। गीता के अनुसार अपकीर्त्ति का दुःख मौत से भी अधिक होता है :-- सम्भावितस्य चाकीर्त्ति- मरणादतिरिच्यते ॥ (यशस्वी पुरुष को अपयश का दुःख मृत्यु से भी अधिक महसूस होता है) इसलिए सभी स्त्री-पुरुषों को अचौर्यव्रत अंगीकार करना चाहिये । पातंजल योगदर्शन के अनुसार : अस्तेयप्रतिष्ठायां सर्वरत्नोपस्थानम् ।। (जीवन में यदि अचौर्य व्रत की प्रतिष्ठा हो जाय अर्थात् पूर्णरूप से यदि कोई अचौर्यव्रत को For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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